इसे चिंगारी, कहें या आग, रौशनी तो हो चुकी है। मैं बात कर रही हूँ #metoo मूवमेंट की।
क्या आखिरकार भारत का #मीटू मूवमेंट आ गया है? मुझे लगता है कि यह इतना आसान नहीं है, लेकिन यह एक शुरुआत है।
वो कहते हैं ना, के बदलाव के लिए बस एक आगाज़ की ज़रूरत होती हैं, मानों वो आगाज़ हो चुका है।
पिछले कुछ दिनों में ट्विटर पर, बहुत से “महत्वपूर्ण” पुरुषों के नाम लाइमलाइट में आ रहे हैं , और इस सूचि में नाम बढ़ते ही जा रहे हैं। नाना पाटेकर के बाद, कैलाश खेर, चेतन भगत, विकास बहल, उत्सव चक्रवर्ती, रजत कपूर और अब हाल ही में एक महिला ने, अभिनेता अलोक नाथ पर उत्पीड़न का आरोप लगाया है। अनुचित टिप्पणियों से, अश्लील चित्रों तक, या सीधे शारीरिक उत्पीड़न तक। महिलाएँ उनपर शोषण करने वालों के बारे में बात कर रही हैं।

मीटू मूवमेंट ने न सिर्फ बॉलीवुड को हिला कर रख दिया है, बल्कि आम जनता की ख़ामोशी को भी आवाज़ दे दी है।
सच कहूँ तो मेरी हर सुबह काली सी हो गयी है। सुबह उठते ही कुछ नई कहानियाँ सामने आती है.. कुछ नए अनुभव सामने आते हैं। जो दिल में डर और चिंता नहीं, बल्कि गुस्सा भर देते हैं।
एक तरह से ख़ुशी भी होती है, के देर से ही सही लेकिन ये साहसी महिलाएँ, अपने-अपने अनुभवों के साथ सामने आ रही हैं।
आश्चर्य होता है ये सोच कर के, यौन शोषण जैसी घिनौनी चीज़ करके, बिना किसी अहसास और अफ़सोस के, ये लोग इतने साल से अपना काम कर रहे हैं और मौज की ज़िन्दगी जी रहे हैं।

तनु श्री दत्ता के खुलासे के बाद, बहुत से लोग इस बात पर सवाल उठा रहे थे के, इतने साल बाद क्यों सामने आना? या इतने साल से क्यों चुप थे? तो मैं इन सवालों का ये जवाब देना चाहूंगी के, ज़रूरी ये नहीं है के कितने साल बाद सामने आए, बड़ी बात ये है के, इन अंदर ही अंदर घुट रही खामोशियों को आवाज़ उठानी की हिम्मत मिल गई है ।

मैं खुश हूँ के सभी अपने अनुभवों के साथ सामने आ रहे हैं, और सालों की घुटन को बहार निकाल रहे हैं। लेकिन अभी भी बहुत से लोग हैं जो नहीं बोल पा रहे हैं। और उसमे कुछ गलत नहीं हैं। आप तब बोलें, जब आप तैयार हों। और इन सभी साहसी लोगों को मैं कहना चाहूंगी के –

चल उठे बेख़ौफ़ जो, उन क़दमों को ना रुकने दो..
उठो चलो गिरो मगर, सहो ना अत्याचार को,

जल उठी है आग जो, धधक उठी है आँच जो..
उस आग की मशाल को ना बुझने दो ना मिटने दो,

ख़ामोश थी ज़ुबान जो, ज़ुबान को आवाज़ दो..
अपना हाथ थाम लो, और पंखों को उड़ान दो,

हो आदि तुम, अनंत तुम, अडिग अटल अमर हो तुम…
यश हो तुम विवश नहीं, ये बात तुम भी जान लो,

चल उठे बेख़ौफ़ जो, उन क़दमों को ना रुकने दो..
उठो चलो गिरो मगर, सहो ना अत्याचार को|

    – यशी