Sushant Singh Rajput with his father K K Singh (Source: Instagram | @shwetasinghkirti)
Sushant Singh Rajput with his father K K Singh (Source: Instagram | @shwetasinghkirti)

सुशांत सिंह राजपूत की मौत को करीब दो महीने होने वाले हैं, और इन दो महीनों में उनके परिवार पर क्या बीती है हम सोच भी नहीं सकते हैं। हाल ही में सुशांत के केस में सीबीआई इन्क्वायरी जारी है, इसी बीच सुशांत की फैमिली पर कईं इलज़ाम लगाए जा रहे हैं और उनके कैरेक्टर पर भी कीचड़ उछाला जा रहा है। इन सबके चलते उनकी फैमिली ने 9 पेज का इमोशनल लेटर शेयर किया है, जिसमे उन्होंने ये भी लिखा है के उन्हें सबक सीखने की धमकी दी जा रही है।

इस लेटर की शुरुआत जलालपुरी के एक शेर से की गयी है।

चिट्ठी में लिखा है –

तू इधर उधर की बात ना कर ये बता की काफिला क्यूँ लुटा, मुझे रहजनों से गिला नहीं तेरी रहबरी का सवाल है।

इसके आगे लिखा है –

कुछ साल पहले की बात है। ना कोई सुशांत को जानता था, ना उसके परिवार को। आज सुशांत की हत्या को लेकर करोड़ों लोग व्यथित हैं और सुशांत के परिवार पर चौतरफ़ा हमला हो रहा है। टीवी अखबार पर अपना नाम चमकाने की गरज से कई फ़र्ज़ी दोस्त-भाई-मामा बन अपनी अपनी हाँक रहे हैं। ऐसे में बताना ज़रूरी हो गया है के आखिर सुशांत का परिवार होने का मतलब क्या है?

उन्होंने लिखा –

सुशांत के माता पिता कमाकर खाने वाले लोग थे। उनके हंसते-खेलते पाँच बच्चे थे। उनकी परवरिश ठीक हो इसलिए नब्बे के दशक में गाँव से शहर आ गए। एक आम भारतीय माता पिता की तरह उन्होंने मुश्किलें खुद झेली। बच्चों को किसी बात की कमी नहीं होने दी। हौंसले वाले थे सो कभी उनके सपनों पर पहरा नहीं लगाया। कहते थे जो कुछ दो हाथ-पैर का आदमी कर सकता है, तुम भी कर सकते हो।

इसके आगे उन्होंने लिखा –

पहली बेटी में जादू था। कोई आया और चुपके से उसे परियों के देश ले गया। दूसरी राष्ट्रीय टीम के लिए क्रिकेट खेली। तीसरी ने कानून की पढाई की तो चौथे ने फैशन डिज़ाइन में डिप्लोमा किया। पाँचवा सुशांत था। ऐसा, जिसके लिए सारी माएँ मन्नत माँगती हैं। पूरी उम्र, सुशांत के परिवार ने ना कभी किसीसे कुछ लिया ना कभी किसीका अहित किया।

इसके आगे उन्होंने बताया के सुशांत के एक्टर बनने की बात कैसे शुरू हुई –

सुशांत के परिवार को पहला झटका तब लगा जब माँ असमय चल बसी। फैमिली मीटिंग में फैसला हुआ कि कोई ये ना कहे कि माँ चली गयी और परिवार बिखर गया, सो कुछ बड़ा किया जाए। सुशांत के सिनेमा में हीरो बनने कि बात उसी दिन चली। अगले आठ-दस साल में वो हुआ, जो लोग सपने में देखते हैं। लेकिन अब जो हुआ वो दुश्मन के साथ भी ना हो।

इसके आगे उन्होंने लिखा –

एक नामी आदमी को ठगों – बदमाशों- लालचियों का झुंड घेर लेता है। इलाके के रखवाले को कहा जाता है कि बचाने में मदद करें। अंग्रेज़ों के वारिश हैं, एक अदना हिंदुस्तानी मरे, इन्हे क्यों परवाह हो? चार महीने बाद सुशांत के परिवार का भय सही साबित होता है। अंग्रेज़ों के दूसरे वारिश मिलते हैं। दिव्यचक्षु से देखकर बता देते हैं कि ये तो जी ऐसा हुआ है।

व्यवहारिक आदमी है। पीड़ित से कुछ मिलना नहीं, सो मुल्ज़िम कि तरफ हो लेते हैं। अंग्रेज़ों के एक और बड़े वारिश तो जलियावाला फेम जेनरल डायर को भी मात दे देते हैं। सुशांत के परिवार को कहते हैं कि तुम्हारा बच्चा पागल था, सुसाइड कर गया, होता रहता है, कोई बात नहीं। ऐसा करो पाँच-दस मोटे-मोटे लालों का नाम लिखवा दो, हम उसका भूत बना देंगे।

इसके बाद वो लिखते हैं के इस तरह उनकी डेड बॉडी के फोटोज़ रिलीज़ कर दिए गए थे –

सुशांत के परिवार को शोक मानाने का समय भी नहीं मिलता है। हत्यारों को ढूँढने के बजाय रखवाले उसके मृत शरीर कि फोटो प्रदर्शनी लगाने लगते हैं। उनकी लापरवाही से सुशांत मरा। इतने से मन नहीं भरा तो उसके मानसिक बीमारी कि कहानी चला उसके चरित्र को मारने में जुट जाते हैं। सुशांत के परिवार ने मोटे लालों का नाम नहीं लिया तो क्या हुआ ? अंग्रेज़ों के वारिश हैं, कुछ भी कर सकते हैं सो फैशन परेड में जुट गए।

इसके आगे उन्होंने लिखा –

सुशांत के परिवार का सब्र का बाँध तब टूटा जब महीना बीतते- ना -बीतते महंगे वकील और नामी पीआर एजेंसी से लैश ‘हनी ट्रैप’ डंके कि चोट पर वापस लौटता है। सुशांत को लूटने मारने से तसल्ली नहीं हुई तो उसकी स्मृति को भी अपमानित करने लगता है। उनकी बरात में रखवाले भी साँफा बांधकर शरीक होते हैं। सच्ची घटनाओं से प्रेरित उपन्यास ‘गॉडफादर’ में उसके माफिया किरदार डॉन कोरलीओन ने कहा ‘अमेरिका एक सुन्दर देश है, यहाँ कानून का राज है’।

इतना ही नहीं, उन्होंने ये भी बताया के परिवार को सबक सिखाने की धमकी दी जा रही है –

सवाल सुशांत की निर्मम हत्या का है। सवाल ये हैं के क्या महेंगे वकील कानूनी पेचीदगियों से न्याय की भी हत्या कर देंगे? इससे भी बड़ा सवाल है की अपने को इलीट समझने वाले, अंग्रेज़ियत में डूबे, पीड़ितों को हिरासत में देखने वाले नकली रखवालों पर लोग क्या भरोसा करें। सुशांत के परिवार, जिसमें 4 बहनें और एक बूढ़ा बाप है, को सबक सिखाने की धमकी दी जा रही है। एक एक कर सबके चरित्र पर कीचड़ उछाला जा रहा है।  सुशांत से उनके संबंधों पर सवाल उठाया जा रहा है।

तमाशा करने वाले और तमाशा देखने वाले ये ना भूलें के वो भी यहीं हैं। अगर ये आलम रहा तो क्या ग्यारंटी है के कल उनके साथ ऐसा नहीं होगा? हम देश को उधर लेकर क्यों जा रहे हैं जहाँ अपने को जागीरदार समझने वाले अपने गुर्गों से मेहनतकशों को मरवा देते हैं और सुरक्षा के नाम पर तनख्वाह लेने वाले  खुलेआम बेशर्मी से उनके साथ लग लेते हैं?

इस लेटर को पढ़कर मेरे पास कुछ शब्द ही नहीं बचे। सुशांत के परिवार के दुख का कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता है। हम बस ये दुआ कर सकते हैं के जो भी सच है वो उनके और पूरे देश के सामने आ जाए।