शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत की थी एंटी हीरो के रूप में। खूब लोकप्रियता भी मिली। उस दौर में एंटी-हीरो से हीरो बन जाने का सफर आसान नहीं होता था। लेकिन फिर जब वह हीरो बन कर आये, तब भी उतनी ही तालियां बजीं, जितनी एंटी हीरो होने पर बजी थी। वर्तमान दौर में अभिनेता ताहिर राज भसीन भी कुछ ऐसी ही लोकप्रियता का स्वाद चख रहे हैं। एंटी हीरो, साइड हीरो, छोटे किरदारों से होते हुए, अब उनकी मेहनत की रेलगाड़ी आ पहुंची है लीड किरदारों तक। इंटेंस किरदारों से लेकर, दब्बू से दबंग  किरदार तक आप ताहिर को कैसे भी किरदार दे दीजिये, वह उसे उसी कन्विक्शन के साथ निभा जायेंगे। शुरुआती दौर में अपने अभिनय को निखारने में पूरी तरह से डूबने वाले वॉइस ट्रेनिंग, बॉडी लैंग्वेज एनालैटिक ट्रेनिंग से लेकर खुद को निखारने में ताहिर ने कोई कसर नहीं छोड़ी है और उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि आज एक के बाद एक उनके प्रोजेक्ट्स सामने आ रहे हैं और हर बार एक नए ताहिर राज भसीन हम सबके सामने आ रहे हैं।

एक चेहरा, कई किरदार

‘ये काली काली आँखें’ देखने के बाद, मेरी हॉस्टल के दिनों की मेरी दोस्त ने फोन कर कहा, यार ‘ये काली काली आँखें’ में जो नायक हैं, गजब का काम किया है। मैं तो फैन हो गई। उसी दोस्त ने कहा कि जब मैंने उसकी सीरीज ‘रंजिश ही सही’ देख डाली, उसमें एकदम अलग किरदार लगा है। फिर ‘लूप लपेटा’ के ट्रेलर पर अचानक से रुक कर देखा, तो यही एक्टर नए आये, सिर्फ इनकी वजह से पूरा ट्रेलर देख गयी। दरअसल, ताहिर राज भसीन फिलवक्त टॉक ऑफ़ द टाउन बने भी हुए हैं। एक के बाद एक अलहदा किरदार निभा कर, उनकी युवाओं में एक अलग ही फैन बेस बन रही है।फिल्म ‘83’ में एक किरदार है , जिसके पास गिने चुने संवाद हैं। मैच नहीं खेले जाने की अपनी खीझ, टीम में तवज्जो न मिलने पर मन में ही गुस्से को दबा कर रखने वाला यह किरदार अपनी आँखों से बात कह जाता है। फिर जब रियल लाइफ शख्स खुद आकर कहते हैं, तुमने हूबहू वहीं परदे पर उतारा, जो मैं हूँ। सुनील गावस्कर जैसे परफेक्शनिस्ट से मिला यह कॉम्प्लिमेंट कोई कम बड़ी बात नहीं है। इसी एक्टर की जब मैं ‘मर्दानी’ फिल्म याद करती हूँ, तो जिस तरह से खूंखार खलनायक यह एक्टर नजर आये हैं, नि: संदेह उस फिल्म में रानी मुखर्जी ने बाजी मारी है, लेकिन वह फिल्म बिना एक स्ट्रांग नेगेटिव किरदार के उस स्तर पर नहीं पहुँच सकती थी, जहाँ वह पहुँच पायी। फिल्म ‘फोर्स 2’ में फिर से एक दमदार किरदार में वही चेहरा सामने आता है।

कट टू, मैं आ जाती हूँ फिल्म ‘छिछोरे’ पर। दोस्तों और जिंदगी के मायने पर आधारित इस फिल्म के सभी पात्र अपने आप में किरदार थे। कलाकारों की फ़ौज होने के बावजूद, एक किरदार पर मेरी नजर बार-बार ठहरती है। और इसकी वजह है खुद उस फिल्म के डेरेक किरदार में ठहराव। एक बार फिर से कम संवाद, मगर सशक्त एक्सप्रेशन। और फिर अचानक एक ही हफ्ते में रिलीज होती है ‘रंजिश ही सही’ये काली-काली आँखें’। एक ही चेहरा, लेकिन अलग कहानियां और अलग किरदार। इन कहानियों में उनके अभिनय के खुमार अब तक छाया ही रहता है कि आ जाती है एक और दिलचस्प फिल्म ‘लूप लपेटा’ का ट्रेलर, जिसमें इस कलाकार की ऐसा अवतार देखने को मिलता है, जैसे कि गुंजाइश फिलवक्त उनसे की नहीं गई थी। जी, मैं बात कर रही हूँ अभिनेता ताहिर राज भसीन की, जिन्होंने पिछले कुछ सालों में इतने सशक्त किरदार निभाए हैं और खासतौर से पिछले दो सालों में जितने अलग-अलग मिजाज के किरदारों के एक्सपेरिमेंट किया है।  फिल्म ‘लूप लपेटा’ में भले ही ताहिर का किरदार जिंदगी में हमेशा शॉर्ट कट्स लेता नजर आएगा, लेकिन अपने अभिनय करियर में ताहिर ने कोई शॉर्ट कट्स नहीं लिए हैं। 250 फिल्मों के रिजेक्शन, खुद को बिना इमेज में बांधे और अपने आइडल शाह रुख खान की तरह शिद्द्त से मेहनत करते हुए ताहिर भसीन ने सफलता और लोकप्रियता का स्वाद चखना शुरू कर दिया है।

ताहिर नहीं हो रहे हैं टाइपकास्ट

ताहिर के पिछले कुछ प्रोजक्ट्स पर पैनी नजर डाल कर देखती हूँ, तो स्पष्ट रूप से ताहिर के अभिनय की वह रेंज नजर आती है। बतौर अभिनेता ताहिर भीड़ से अलग पहचान इसलिए बना पा रहे हैं, क्योंकि भले ही उन्होंने कम प्रोजेक्ट्स में काम किया है। लेकिन उन्होंने अबतक जितनी भी फिल्मों में अभिनय किया है, उन्होंने अपने किरदारों को रिपीट नहीं किया है। मुझे ताहिर की यह बात प्रभावित कर रही है कि अमूमन वह जिस मुकाम पर अब हैं, वहां कलाकारों को टाइपकास्ट करते देर नहीं लगती है। लेकिन लीड किरदारों के दोस्त या नेगेटिव किरदारों को निभाते हुए, उन्होंने जो लीड किरदार तक अपनी जगह बना ली है, वह उल्लेखनीय है। यह एक कलाकार के लिए बड़ी कामयाबी होती है कि एक ही हफ्ते में अगर उनकी दो फिल्में या कोई सीरीज दर्शकों के सामने आये, लेकिन साथ ही साथ एक चुनौती भी होती है कि दोनों किरदारों में कोई समानता न दिखे और दर्शक एकरसता के शिकार न हों। ताहिर के शो ‘ये काली काली आँखें’ और ‘रंजिश ही सही’ में ताहिर के अभिनय के वे विभिन्न आयाम देखने को मिलते हैं। ताहिर के किरदारों पर गौर करें तो उन्होंने किसी भी किरदार में लार्जर देन लाइफ पहलू नहीं रखा है। लेकिन इसके बावजूद जब वह खलनायक बन कर आते हैं या फिर एक ऑब्सेसिव लवर की भूमिका में सामने आते हैं, तो आप उस किरदार से न सिर्फ कनेक्ट कर पाते हैं, बल्कि ताहिर जैसे अभिनेता आपको विश्वास दिलाने में सफल हो पाते हैं कि वह जो कर रहे हैं, वह कन्विक्शन के साथ कर रहे हैं। ये काली काली आँखें में कहानी के मुताबिक जिस तरह वह किरदार में ढले हैं कि एक ही समय में वह सच्चे प्रेमी नजर आने लगते हैं तो दूसरे ही पल जब वह किसी और से प्यार में पड़ते हैं, तो उनकी आँखों  में धोखा नजर आने लगते हैं। मैं इस बात को पूरी तरह से यकीन से कह सकती हूँ कि अमजद खान और अरुण गोविल जैसे कलाकार, जो एक ही किरदार से अमर हो गए, फिर दर्शकों ने उन्हें किसी और किरदार में स्वीकारा ही नहीं, कोई भी अभिनेता इस फेज से नहीं गुजरना चाहता होगा। ताहिर ने कुछ समय पहले मुझसे हुई एक बातचीत में इस बात को स्वीकारा कि इसके बावजूद कि उनके पास प्रोजेक्ट्स कम रहे, उनका यह कॉन्सस निर्णय रहा है कि वह एक ही जैसे किरदारों में नहीं ढलेंगे। आप उनकी आने वाली फिल्म ‘लूप लपेटा’ का ट्रेलर देखें, तो उनका जो रापचिक अंदाज़ नजर आ रहा है, वह उन निर्देशकों के लिए रास्ते खोल रहा है, जो शायद उनकी दो रिलीज देख कर उन्हें किसी इमेज में बांधें। ताहिर लगातार चौंका रहे हैं।

250 बार हुए हैं रिजेक्ट

ताहिर दिल्ली के रहने वाले हैं और फ़िलहाल जो लाइमलाइट वह एन्जॉय कर रहे हैं, वह उन्हें आसानी से नहीं मिली है।शुरुआती दौर में मेरी बातचीत जब ताहिर से हुई थी तो उन्होंने बताया था कि उन्होंने पांच साल तक इंडस्ट्री में संघर्ष किया, तब जाकर उन्हें ‘मर्दानी’ मिली थी। लेकिन इसके बाद भी ऐसा नहीं था कि उनके पास काम की भरमार आई थी। बहुत ही गिने-चुने ऑफर ही मिल रहे थे। बैरी जॉन जैसे दिग्गजों के साथ अभिनय की ट्रेनिंग लेने के बावजूद ताहिर को शुरुआत में 250 फिल्मों से रिजेक्ट किया गया था। शुरुआती दौर में ताहिर ने खुद यह बात दोहराई है कि वह एक जिद्दी किस्म के अभिनेता थे, उन्हें लगता था सिर्फ बड़ी फिल्मों में ही अभिनय किया जाना चाहिए। इसका खामियाजा उन्हें शुरू में भुगतना भी पड़ा था।  लेकिन फिर उन्होंने अपना रवैया बदला और आज नतीजा सबके सामने है। ताहिर मानते हैं कि अभिनय की दुनिया ही ऐसी है कि यहाँ हर किसी को रिजेक्शन का सामना करना ही पड़ता है, लेकिन बाकी निराश और हताश होकर लौटने वाले लोगों की तरह ताहिर को हमेशा आगे बढ़ने में विश्वास रहा।

छोटे किरदारों से लीड तक का सफर

शुरुआती दौर में ‘काय पो चे’ जैसी फिल्मों में ताहिर बेहद कम समय के लिए स्क्रीन पर आते हैं, लेकिन धीरे-धीरे ताहिर ने धैर्य के साथ अपने अभिनय को अंजाम दिया और अब आलम यह है कि एक के बाद एक उनके कई प्रोजेक्ट्स सामने आ रहे हैं। ताहिर की अभिनय शैली की खासियत यह है कि वह अभिनय के हर रस को दर्शाने में माहिर हैं। उनके एक्सप्रेशन पर गौर करें तो उन्हें अगर किसी फिल्म में दब्बू किरदार निभाना है और किसी फिल्म में दबंग, तो वह दब्बू से लेकर दबंग का किरदार उसी कन्विक्शन के साथ निभा लेंगे। उन्हें नेगटिव किरदार में देख कर आप उन पर जितने आग बबूला होंगे, उनके रोमांटिक अंदाज़ को देख कर उन पर फ़िदा हुए बगैर भी आप नहीं रह पाएंगे। लाउड किरदार में भी मैं अगर ताहिर की कल्पना करती हूँ तो वह उतने ही फिट बैठते हैं, जितने बेहतर तरीके से सुनील गावस्कर का शांतचित किरदार निभाया। ‘लूप लपेटा’ में उनका कॉमिक अंदाज़ तो ट्रेलर में इम्प्रेस कर ही रहा है। शायद यही वजह है कि अब वह निर्देशकों की चॉइस बनते जा रहे हैं। ‘मंटो’ जैसी इंटेंस फिल्म में भी ताहिर अपनी काबिलियत दिखा पाते हैं।

शाह रूख के फैन सिर्फ कहने को नहीं, बल्कि उनकी तरह ही की शिद्द्त से मेहनत

ताहिर राज भसीन के बारे में यह बात जरूर बताना चाहूंगी कि उनके अभिनय में जो ठहराव नजर आ रहा है, उसके पीछे उनकी परवरिश और उनकी अपनी ट्रेनिंग बहुत मायने रखती है। ताहिर के पिता एयरफोर्स पायलेट रहे हैं। भाई भी पायलट हैं। बचपन में अपने पापा की यूनिफॉर्म पहन कर ताहिर भी सोचा करते थे कि वह एयरफोर्स में जायेंगे, लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ी, एक्टिंग में दिलचस्पी बढ़ी तो परिवार का भी साथ मिला और बाकायदा फिल्म स्टडीज में मास्टर किया और साथ ही बैरी जॉन जैसे दिग्गज से अभिनय की बारीकी सीखी, इसके बाद फिल्मों में ऑडिशन देना शुरू किया। शाह रुख खान के फैन रहे ताहिर ने सिर्फ कहने के लिए अभिनय की दुनिया में कदम नहीं रखा, बल्कि शाह रूख जैसी शिद्द्त से मेहनत भी और खुद को इस मुकाम पर पहुँचाया। ताहिर के बारे में कम लोगों को यह जानकारी होगी कि उन्होंने अन्य कलाकारों से एकदम अलहदे अंदाज़ में खुद को बतौर एक्टर के रूप में तैयार किया। उन्होंने बाकायदा बॉडी लैंग्वेज व बिहेवियरल एनालैटिक और इंटेंसिव एक्टिंग, वॉइस ट्रेंडिंग प्रोग्राम की भी ट्रेनिंग ली है, वह भी नसीरुद्दीन शाह के मार्गदर्शन में। तो जहाँ फिल्मों में आने से पहले कई स्टार किड्स का ध्यान अपनी बॉडी बनाने पर होता है, ताहिर ने अभिनय की विभिन्न विधाओं पर काम किया।


प्रोजेक्ट्स जो रहे खास

‘मर्दानी’ से मिला करियर में पहला ब्रेक, फिर ‘फोर्स 2‘ में बने एंटी हीरो, ‘काय पो छे’ और ‘लव पैसा दिल्ली’ जैसे कुछ प्रोजेक्ट्स भी किये। ‘मंटो’,83′, ‘ये काली-काली आँखें’, ‘रंजिश ही सही’, ‘छिछोरे‘ में मिली लोकप्रियता। लूप लपेटा को लेकर हैं खूब चर्चे में। वाकई मेरे लिए आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि अभी ताहिर ने और क्या-क्या काबिलियत छुपा रखी है, जिसको देखने के लिए मैं जरूर इंतजार करूंगी।