लता मंगेशकर ने अपना पेन नेम रखा था आनंदघन’, जिसका मतलब होता है खुशियों का बादल, एकदम अपने स्वभाव से मेल खाता हुआ नाम चुना था उन्होंने। लता मंगेशकर हमेशा अपनी जिंदगी में खुशियों का ही आकाश तलाश लिया करती थीं। सोशल मीडिया और गूगल पर मौजूद अगर उनकी तस्वीरों को गौर से देखा जाये, तो उसमें एक ऐसी लड़की की छवि निकल कर सामने आती है, जो भले ही निजी जिंदगी में कितनी ही जिम्मेदारियों को निभाने में व्यस्त रही हों, लेकिन उन्होंने जिंदगी में कभी गम को मंडराने नहीं दिया, बल्कि हमेशा खुशियों के आकाश को ही तलाशा, अपनी बहनों की जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए, अपने काम के प्रति समर्पित रहने वालीं लता जी ने न जाने अपने नाम कितने कीर्तिमान स्थापित किये, लेकिन सबसे बड़ा सम्मान उन्हें जो मिला, वह है लोगों के दिलों में उनके लिए सम्मान और कभी खत्म नहीं होने वाला उनके लिए प्यार। लता मंगेशकर न सिर्फ अपने दौर के लोगों के बीच, बल्कि कई जेनरेशन के बीच हमेशा याद की जाती रहेंगी। वह अमर रहेंगी। उनके बारे में दिलीप साहब ने सही बात कही है कि एक ही सूरज, एक ही चाँद और एक ही लता हैं इस दुनिया में। लता जी के व्यक्तित्व से रूबरू होते हुए, जो दिलचस्प पहलू सामने आये हैं, उनमें एक बात जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया कि उस दौर में जब मेल डोमिनेटेड सोसाइटी थी, इसके बावजूद उन्होंने हमेशा अपने मेल सिंगर्स की तुलना में फीस के रूप में एक रूपये अधिक लिए, ताकि महिला सिंगर्स का मान बना रहे। लता जी के जीवन से जुड़े एक और भी कई पहलू हैं और उनके सफर पर एक नजर

लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 में मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में हुआ था। उनका बचपन का नाम हेमा था। लेकिन बाद में उनके संगीतकार पिताजी ने उनका नाम एक प्रतिभाशाली नाट्य अभिनेत्री लतिका के नाम पर लता रखा था। दिलचस्प बात है कि लता जी ने बचपन ने ही शास्त्रीय संगीत में रूचि दिखानी शुरू कर दी थी, उन्हें कठिन से कठिन राग भी याद हो जाते थे। ऐसे में पिताजी ने ही उन्हें विधिवत शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देनी शुरू की। लता जी ने अपने जीवन में 30000 से भी अधिक गाने गाये हैं, उन्होंने नूरजहां से लेकर काजोल, माधुरी और लगभग चार कई तक की हिंदी फ़िल्मी हीरोइन के लिए गाने गायें। उन्हें भारत रत्न, पद्मविभूषण और ऐसे कई पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उनका नाम गिनीश बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है। लता जी ने हिंदी के अलावा और भी भाषाओं में गाने गाये हैं।

घर में संभाली सबकी जिम्मेदारी

पिताजी की अचानक मृत्यु हो जाने के बाद, लता ने पूरे घर की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। उन्होंने कभी शादी नहीं करने का फैसला लिया और अपनी चार छोटे भाई बहनों का ख्याल रखा, उन्होंने कभी उन्हें पिता की कमी महसूस नहीं होने दी, आर्थिक स्थिति खराब होने पर भी उन्होंने कभी उनको कोई कमी नहीं की। उनकी बहनें उनकी हमेशा ऋणी रहेंगी। उन्होंने सभी का घर बसाया।

Source: instagram I @lata_mangeshkar

अपने उसूलों पर खड़ी रहीं, अपने गाने नहीं सुन पाती थीं

लता मंगेशकर इस बात को लेकर हमेशा सजग रहीं कि  उनके गानों के शब्दों का लोगों पर क्या असर रहेगा, इसलिए वह फिल्मों के डांस नंबर वाले गाने गाने से बचती रहती थीं। उन्होंने साथ ही इस बात को भी हमेशा तवज्जो दी कि लोग उनके काम के साथ, उनकी भी इज्जत करें, एक बार एक म्यूजिक निर्देशक ने उनकी सफ़ेद साड़ी पर अपशब्द बोल दिए थे, लता जी ने उनके साथ कभी काम न करने का फैसला ले लिया था।  लता वक़्त की एकदम पाबंद थीं, वह न तो इंतजार करती थी, न करवाती थीं। हालाँकि ‘रंग दे बसंती’ के लिए उन्होंने ए आर रहमान का तब तक इंतजार किया था, जब तक कि उन्होंने अपना काम पूरा नहीं कर लिया था। लता जी ने खुद यह बात कुछ इंटरव्यू में स्वीकारी है कि वह कभी अपने गाये गीत पूरी नहीं सुनती थीं, क्योंकि उन्हें फिर उसमें कमियां लगने लगती थीं। एक दिलचस्प बात यह भी है कि जहाँ 50-60 के दशक में लता मंगेशकर लगातार हिट गाने दे रही थीं। म्यूजिक निर्देशक ओपी नय्यर के साथ उन्होंने काम नहीं किया था। वजह यह थी कि फिल्म ‘आसमान’ के लिए वह को-एक्ट्रेस के लिए लता की आवाज इस्तेमाल करना चाहते थे। लता को यह मंजूर नहीं था, इसलिए उन्होंने मना कर दिया और यह बात ओपी नय्यर को इस कदर चुभी कि उन्होंने कभी लता के साथ काम न करने का फैसला लिया।

जब प्ले बैक सिंगिंग के लिए माँगा क्रेडिट

उस दौर में सिंगर्स को गाने के लिए क्रेडिट नहीं मिलता था, लेकिन लता मंगेशकर ने राज कपूर से फिल्म ‘बरसात’ के दौरान कहा कि हमारे गाने की मेहनत हमारी होती है और हमें इसका क्रेडिट मिलना ही चाहिए, राज कपूर ने इस बात पर सहमति जतायी। इसके बाद पहली बार इसी फिल्म में लता मंगेशकर और मुकेश का नाम क्रेडिट टाइटिल में गया।

स्कूल की पढ़ाई नहीं करके भी डॉक्टरेट की उपाधि

कितना दिलचस्प पहलू है लता मंगेशकर की जिंदगी का कि उन्होंने सिर्फ एक दिन के लिए स्कूल की पढ़ाई की थी, लेकिन उन्हें कई भाषाओं का ज्ञान था। उर्दू तो उन्होंने बहुत बाद के सालों में सीखा। दरअसल, स्कूल के पहले दिन ही आशा भोंसले को डांट पड़ गई थी, इस बात से लता को गुस्सा आ गया था, तो उन्होंने फिर दोबारा स्कूल नहीं जाने का फैसला लिया था।  उन्होंने मराठी वर्णमाला अपने घर में ही एक सहायिका को रख कर सीखी। फिर अपनी रिश्तेदार से हिंदी सखी और मुम्बई आकर लेखराज शर्मा से भाषा की पकड़ बनायीं। लता को उर्दू समेत पंजाबी जैसी भाषाएं भी आती थीं और उन्हें छह डॉक्टरेट की उपाधियाँ भी मिली थीं।


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लता का वह गीत जो कभी रिलीज नहीं हुआ

लता मंगेशकर के पिता दीना नाथ मंगेशकर कला प्रेमी रहे। लेकिन जब 1942 में पहली बार लता ने इनके द्वारा गाये प्रथम गीत जिसे एक मराठी फिल्म ‘किती हसल’ के लिए गाया था। वह कभी रिलीज नहीं हो पाया, क्योंकि लता के पिताजी को लता का फिल्म में गाना पसंद नहीं आया था। हालाँकि बाद में लता ने एक समय में एक साथ कई दिग्गज गायकों के साथ गाया, जिनमें रफ़ी, मुकेश, किशोर कुमार, मन्ना डे, संगीतकारों में अनिल बिश्वास, शंकर-जयकिशन, गुलाम-मोहम्मद, नौशाद, सचिव देव बर्मन जैसे नाम हैं ।

आएगा आने वाला से बदली तक़दीर

लता मंगेशकर को पहचान मिली 1947 में जब उनकी फिल्म ‘आपकी सेवा ‘में उन्हें एक गीत गाने का मौक़ा मिला। इसके बाद, उन्होंने कई सारे गीत लगातार गाये। उन्होंने सबसे पहले 1949 में ‘महल’ के लिए गाया गीत ‘आएगा आने वाला’, जिसके बाद उनके प्रशंसक इस कदर बढ़े कि म्यूजिक निर्देशकों की कतार लग गयी। उसके बाद उन्हें ‘दो आँखें बारह हाथ’, ‘दो बीघा जमीन’, ‘मदर इण्डिया’, ‘मुगल ए आजम’ और ऐसी कई दिग्गज फिल्मों में गाने का मौका मिला। ‘महल’, ‘बरसात’, ‘बड़ी बहन’ जैसी फिल्मों से भी लता फेमस हुईं, इसके बाद, ‘मधुमती’, ‘छाया’, ‘हम दोनों’, ‘जंगली’, ‘जब जब फूल खिले’ जैसी फिल्मों के लिए भी गीत गाया। बाद के दौर में यशराज फिल्म्स की कई फिल्में ‘चांदनी’, ‘दिल तो पागल है’, ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’, ‘वीर जारा’ जैसे फिल्मों में गाने गायें। ‘रंग दे बसंती’ में भी लता ने अपनी आवाज दी। हाल के दौर में उन्हें सोनू निगम, उदित नारायण और एआर रहमान बेहद पसंद थे।

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नूरजहां के साथ मिला था लता को अभिनय का मौका

लता मंगेशकर की जिंदादिली अगर आपको कभी सामने से देखने का मौका न मिला हो, तो उनकी कुछ पुरानी तस्वीरों को देखें, सोनी टीवी के ‘सीआईडी’ के सुपर फैन रहीं लता मंगेशकर की इस शो की टीम के साथ एक खास तस्वीर है, जिसमें वह हाथों में मस्ती में बन्दूक ली दिखाई दे रही हैं, उनके चेहरे के एक्सप्रेशन बता रहे हैं कि उनके अंदर भी एक अभिनेता छुपा बैठा था। और यह बात मेरे लिए तो जानना बेहद दिलचस्प है कि लता मंगेशकर ने अपना करियर फिल्मों में गाने से शुरू नहीं किया था, बल्कि बतौर अभिनेत्री वह फिल्मों में काम कर चुकी हैं। हालाँकि उन्हें अभिनय में बहुत रुचि नहीं थी, लेकिन पिता के अचानक मौत हो जाने से जब घर में पैसों की किल्लत आ गई थी तो उन्होंने कुछ हिंदी और मराठी फिल्मों में काम भी किया था। उनकी पहली फिल्म पहली मंगलगौर’ थी, जो वर्ष 1942 में रिलीज हुई थीं।  इस फिल्म में लता जी स्नेह प्रभा प्रधान की छोटी बहन के किरदार में नजर आई थीं। इसके बाद लता जी ने लगातार ‘माझे बाल’, ‘चिंकुला संसार’, ‘गजभाऊ’, ‘बड़ी माँ’, ‘छत्रपति शिवाजी’ और ‘मांद’ जैसी फिल्मों में भी काम किया। दिलचस्प बात यह है कि ‘बड़ी माँ’ में तो लता जी को नूरजहां  के साथ अभिनय करने का मौका मिला था। इस फिल्म में उनके साथ उनकी छोटी बहन आशा भोंसले ने भी काम किया था। लेकिन बाद में लता जी का रूझान फिल्मों के गाने की तरफ ही बढ़ा और उन्होंने फिर अभिनय को विराम दे दिया था। लता जी के पिताजी दीनानाथ मंगेशकर मराठी रंगमंच से जुड़े हुए थे। और इसी कारण पांच वर्ष की उम्र से लता ने अपने पिता के साथ नाटकों में अभिनय करना शुरू किया था और साथ ही साथ इसी उम्र में संगीत में भी उनकी काफी दिलचस्पी हो गई थी।

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संगीत निर्देशन भी कर चुकी थीं लता मंगेशकर

लता मंगेशकर की जिंदगी के यह भी दिलचस्प पहलू हैं कि उन्होंने न सिर्फ सिंगर और अभिनेता की भूमिका निभाई थी, बल्कि उन्होंने कुछ फिल्मों में बतौर म्यूजिक कम्पोजर भी काम किया था। मजेदार बात यह भी रही कि उन्होंने इन फिल्मों में संगीत किसी और नाम से दिया था। उन्होंने नाम भी बड़ा ही दिलचस्प चुना था, आनंदघन यानी खुशियों का बादल, निजी जिंदगी में भी वह कुछ ऐसी ही रहीं। लता को इस बात का हमेशा फक्र रहा है कि उनकी बहन उषा खन्ना और मीना मंगेशकर भी मेल डोमिनेटेड म्यूजिक इंडस्ट्री में बतौर संगीतकार खुद को स्थापित करने में कामयाब रहीं। लता ने ‘मोहित्यांची मंजुला’, ‘मराठा तितुका मेलवावा’, ‘सधी माणसं’ और ‘तांबडी माती’ जैसी मराठी फिल्मों के लिए संगीत कम्पोज किया था और आज भी दर्शकों के बीच इन फिल्मों के गाने बहुत लोकप्रिय हैं।  

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लता मंगेशकर के कुछ कम सुने, लेकिन बेहतरीन गाने

यूं तो हिंदी सिनेमा में लता मंगेशकर का पूरा इतिहास रहा है। उनके गाने सबसे अधिक लोकप्रिय रहे हैं। लेकिन उनके ऐसे भी कई गाने हैं, जो बेहद उम्दा हैं, लेकिन उन पर चर्चा कम हुई है। यह गाने 1950 से लेकर 1970 की फिल्मों में इस्तेमाल किये गए हैं। इन गानों में वर्ष 1973 में आई फिल्म ‘प्रेम प्रभात’ का गाना ‘ये दिल और उनकी निगाहों के सायें’, इस फिल्म के गाने के बोल लिखे हैं  जां निसार अख्तर ने  इसके अलावा फिल्म ‘आखिरी रात’ का गाना ‘बहारों मेरा जीवन भी संवारों भी काफी लोकप्रिय गीतों में से एक रहा है। यह फिल्म राजेश खन्ना की पहली फिल्म थी। इस फिल्म के गीत कैफ़ी आजमी ने लिखे थे। खय्याम ने संगीत दिया था। ‘एक थी लड़की ‘फिल्म का गाना लारा लप्पा लारा लप्पा लाई रखदा काफी कर्णप्रिय है। इनके अलावा और भी ऐसे कई गाने हैं जो 50 से 70 के दशक में काफी शानदार रहे हैं और जिन्हें सदाबहार गीतों के रूप में याद रखा जा सकता है।

जब पूरे भारत के लोगों की आँखों में आ गए थे आंसू

वर्ष 1962 में जब पूरा देश गम में डूबा हुआ था। उस वक़्त लता मंगेशकर ने शहीदों को याद करके गाना गाया था, जिसे लिखा था गीतकार प्रदीप ने। गाना ना ‘ए मेरे वतन के लोगों ‘, यह गाना सुन कर पंडित नेहरु भी अपने आंसू रोक नहीं पाए थे। आज भी आजादी के यह सबसे लोकप्रिय और कर्णप्रिय गीतों में से एक है।

गाड़ियों की ही नहीं इन चीजों का भी शौक रखती थीं लता मंगेशकर

अमूमन सिंगर्स ठंडा कुछ भी खाना पसंद नहीं करते हैं, लेकिन लता मंगेशकर तो रिकॉर्डिंग के दौरान भी जम कर कोल्ड ड्रिंक्स पीती थीं, फिर चाय भी पी लेती थीं। खाने-पीने में भी उनका परहेज नहीं था, हर तरह के खाने खाती थीं। उन्हें ट्रेवलिंग का हमेशा से शौक रहा, साड़ियों और गाड़ियों की भी शौक़ीन थीं। हंसी-मजाक करना और दोस्तों से खूब बातें करना पसंद तो था ही, उन्हें खाली वक़्त में कुत्तों के साथ वक़्त बिताना भी अच्छा लगता था।साथ ही उन्हें फोटोग्राफी का भी काफी शौक रहा ।

वाकई, लता मंगेशकर मेरे जैसे हर जेनरेशन के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं कि  उन्होंने किस तरह से अपने करियर में जो मुकाम हासिल करना था, उसके लिए मेहनत भी की और घर की जिम्मेदारियों से भी कभी मुंह नहीं मोड़ा, वह अपनी वसूलों से भी पीछे नहीं रहीं। उनकी पूरी जिंदगी सीखने के एक अध्याय जैसा है, जिसे जितना भी फिलहाल मैंने पलटा है, सीखा ही है, आगे भी कई जेनरेशन उनसे सीखता रहेगा, क्योंकि खुद लता अंत-अंत तक कहती थीं कि हमेशा शिष्य बने रहना अच्छा है, तभी आप कुछ नया सीखते हैं, इसलिए कम से कम आज से मैं उनकी इस दिशा को फॉलो करने वाली हूँ और खुद में नयी चीजों को सीखने की ललक को हमेशा बरक़रार रखने की कोशिश करना चाहूंगी।