शकुन बत्रा की फिल्म ‘गहराइयां’ के ट्रेलर ने लगातार मेरी बेताबी बढ़ा दी थी कि कब इस फिल्म को देखूं। आखिरकार इंतजार खत्म हुआ और फिल्म अमेजॉन प्राइम वीडियो पर दर्शकों के बीच आ गई है। ‘गहराइयां’ एक ऐसी फिल्म है, जिसमें मुझे रिश्तों की कॉम्पलेक्सिटीज तो नजर आई ही, लेकिन निर्देशक ने जो शानदार टेक इंसानी फितरत पर लिया है, वह इस कहानी में दिल जीत लेता है कि जब व्यक्ति बड़ी-बड़ी बातें करता है, प्यार-मोहब्बत में मर मिट जाने की बातें उसकी जुबान पर होती है, लेकिन बात जब अपनी सरवाईवल की आती है, तो एक पल भी उसे वक़्त नहीं लगता है, वह सबकुछ कर गुजरने में, जिसके बारे में उसने खुद सोचा हुआ नहीं होता है। ‘गहराइयां’ इंसानी फितरत की उन गहराइयों में झाँक कर देखती है। इस कहानी में लगभग हर रिश्ते उलझे हैं, कहीं न कहीं हर रिश्ते की डिमांड दूसरे रिश्ते से है, हर कोई एक दूसरे से बस अपेक्षाएं ही किये जा रहा है। ऐसे में रिश्ते किस तरह से उलझते जाते हैं और एक ऐसे मुकाम पर पहुँच जाते हैं, जिसका अनुमान मैंने भी बतौर दर्शक नहीं लगाया था कि कहानी में ऐसा हो सकता है। ‘गहराइयां’ के मुख्य केंद्र में है बेवफाई। हर किरदार बेवफाई के दर्द को झेल रहा है, किसी न किसी रूप में। निर्देशक अपनी सोच में मगर स्पष्ट है कि कई बार बेवफा इंसान नहीं होता है, बल्कि सिचुएशन हो जाते हैं। इस कहानी में रोमांस है, रोमांच है, लेकिन एक अजीब सी इंसान के अंदर का खोखलापन है, जो हैरान करता है। हर इंसान के अंदर, एक दूसरा इंसान होता है, जिसे देख पाना कठिन होता है और कई बार तो हम जान बूझ कर भी इस डार्क इंसान को देखना नहीं चाहते हैं। कौन खुद को बेवफा कहलाना पसंद करेगा। लेकिन शकुन इस पर बेबाकी से बात करते हैं। इंसानी फितरत के मंसूबे पर बात करते हैं।  एक सरल नैरेटिव के साथ जटिल कहानी प्रस्तुत की है शकुन ने। दीपिका पादुकोण और सिद्धांत चतुर्वेदी के बेस्ट परफॉर्मेंसेस में से एक रहेगी यह फिल्म।

क्या है कहानी

कहानी अलीशा( दीपिका पादुकोण) की जिंदगी में खुशियां नहीं है, वह खुद को अनलकी मानती है, उसकी मां ने फांसी लगा कर ख़ुदकुशी कर ली होती है। इसका दोषी अलीशा अपने पिता( नसीरुद्दीन शाह) को मानती है। वह एक योग ऐप को बड़े स्तर पर ले जाना चाहती है। उसका बॉयफ्रेंड करण( धैर्य ),  जिसके साथ वह छह सालों से है, लेकिन साथ होकर भी वह साथ नहीं होते हैं। अलीशा की ऐसी जिंदगी में एक नयापन तब आता है, जब उसकी कजिन टिया(अनन्या पांडे) अपने बॉय फ्रेंड जेन(सिद्धांत चतुर्वेदी) के साथ एक हॉलीडे पर जाते हैं। इस दौरान जेन और अलीशा जल्द ही घूल-मिल जाते हैंऔर उनकी नजदीकियां बढ़ने लगती हैं। दरअसल, दोनों का पास्ट उन्हें करीब लाता है, दोनों ने ही डिस्टर्ब चाइल्डहुड देखा हुआ होता है। ऐसे में रिश्तों की उलझन किस तरह से उलझती है और कहानी क्या मोड़ लेती है, यह देखना दिलचस्प है।

बातें जो मुझे अच्छी लगीं

  • कहानी में काफी सहजता से एक कॉम्प्लेक्स कहानी दिखाई गई है। इंसानी फितरत को लेकर इतनी मुखर कम फिल्में होती हैं, जो इंसान के ग्रे शेड्स को भी दर्शकों के सामने लाने में सार्थक हो सके। हर इंसान यहाँ मतलबी होता है, और बात जब अपने सरवाइवल पर आती है, तो वह हर कदम उठाता है अपने लिए। अपनी सेल्फिशनेस में आप किस तरह किसी मासूम का दिल तोड़ते हैं, आपको एहसास नहीं होता है। इन रिश्तों की बारीकियों को फिल्म में गहराई से दिखाई गई हैं।
  • कलाकारों को एकदम रियल रूप में प्रेजेंट करना भी आकर्षित करता है। कलाकारों को सामान्य से संवाद, जिसे बातचीत करने के अंदाज़ में प्रेजेंट किया गया है, यह नैरेशन का अंदाज़ पसंद आया है।
  • किरदारों के इमोशन को कलाकारों ने खूब बारीकी से पकड़ा है।

बातें जो और बेहतर हो सकती थीं

धोखे पर आधारित कहानियां और बेटी और पिता के बीच उलझी कहानियों का बैकड्रॉप हमने पहले भी फिल्मों में देखा है, उसमें कुछ ट्विस्ट लाते तो कहानी और बेहतर हो सकती थी।

निर्देशक ने अपर मिडिल क्लास की अर्बन स्टोरी को पकड़ा है, जिनकी दुनिया हमें यकीन बहुत स्वप्नीली नजर आती है, लेकिन रियल लाइफ में उससे काफी परे और उलझी होती है। निर्देशक ने परतों को अच्छे से खोला है।

अभिनय

दीपिका पादुकोण रियल लाइफ बेस्ड किरदारों को निभाने में माहिर रही हैं, उन्होंने ‘तमाशा’, ‘कॉकटेल’ में खुद की अभिनय क्षमता को साबित कर दिया है।  इस बार भी उन्होंने इस फिल्म में अपने अभिनय के स्तर को एक लेवल आगे बढ़ाया है। उन्होंने इमोशल दृश्यों में हैरान किया है। यह फिल्म दीपिका की ही फिल्म है। सिद्धांत चतुर्वेदी के किरदार को इस फिल्म में खूब निखरने के मौका मिला है। उनके किरदार में काफी सारे लेयर्स हैं और उन्होंने उस सभी को बखूबी निभाया है। वह जब रोमांस करते हैं, तब भी, और जब अलग रूप लेते हैं, तब भी उनके किरदार से और दिखाओ और दिखाओ वाले फीलिंग आती है। उन्हें देखते हुए मन नहीं भरता है। वहीं अनन्या पांडे ने बड़े ही आराम से अपने किरदार को सहज बनाया है और अच्छा प्ले किया है। हालाँकि उनका किरदार भी इस फिल्म में जटिल में से एक रहा है। लेकिन उन्होंने इसे खूबसूरती से प्ले किया है। धैर्य के लिए यह फिल्म उन्हें किसी और ही जोन में ले जायेगी। उन्होंने एक गुड फॉर नथिंग वाला किरदार अच्छे से जिया है।

मैं इस फिल्म के बारे में यही कहना चाहूंगी कि इस फिल्म को देखने के बाद आपको रिश्तों की परख को लेकर और एक इंसान की फितरत को लेकर खुद से कई बार सवाल पूछने का मन होगा और कई बार आप खुद को यह कहने पर मजबूर होंगे कि इंसान बेवफा नहीं होता है, हालात बेवफाई कर जाते हैं।

फिल्म : गहराइयां

कलाकार : दीपिका पादुकोण, सिद्धांत चतुर्वेदी, अनन्या पांडे, धैर्य करवा, रजत कपूर, नसीरुद्दीन शाह

निर्देशक : शकुन बत्रा

मेरी रेटिंग 5 में से 3 स्टार