सबसे पहले, मैं एक बात पूर्ण रूप से स्पष्ट कर देना चाहूंगी कि ‘अ थर्सडे’ नसीरुद्दीन शाह की फिल्म ‘अ वेडनेसडे’ की न तो सीक्वल फिल्म है और न ही इन दोनों फिल्म में कोई भी राब्ता है, तो मैं चाहूंगी कि इस कंफ्यूजन को सबसे पहले दूर कर लें। हालाँकि दोनों के नैरेक्टिव की बात करूँ तो थोड़ी समानता नजर आती है।दोनों में ही एक आम आदमी, सिस्टम से अपने हाथों में लेकर एक अहम बात कहने की कोशिश करता है।  बहरहाल, अब मुद्दे की बात पर आती हूँ, तो ‘अ थर्सडे’ वर्तमान दौर की एक जरूरी फिल्म है। कुछ फिल्में आपका सिर्फ मनोरंजन कर जाती हैं, कुछ फिल्में मेसेज दे जाती हैं और कुछ फिल्में आपको खुद से सवाल करने पर मजबूर करती है, मेरे लिए यह फिल्म खुद को झकझोरने वाली फिल्म है। मैं सच में अपनी बात कहूँ, तो यह फिल्म देखने के बाद, इस फिल्म के माहौल से मुझे बाहर आने में काफी समय लगा। फिल्म इस कदर अंदर तक वार करती है कि अपने आस-पास और इर्द-गिर्द पर से विश्वास उठने लगता है। हम एक सामान्य सी जिंदगी जी रहे होते हैं, हँसते-खिलखिलाते हुए, लेकिन फिर कुछ ऐसा घट जाता है कि आप सहम जाते हैं। ‘अ थर्सडे’ कुछ ऐसी ही सच्चाई लेकर,लोगों के आँखों से पर्दे हटाने आई है। मैं दिल से कहना चाहूंगी कि मेकर्स ने बड़ी ही संजीदगी से अपने किरदारों के माध्यम से एक अहम सवाल दर्शकों के सामने रखा है, जिससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है। यामी गौतम, नेहा धूपिया, डिम्पल कपाड़िया और अतुल कुलकर्णी जैसे कलाकारों ने इस फिल्म में बेहद अहम मुद्दों को उठाया है और इसे हर शख्स को देखना क्यों जरूरी है, इस पर मैं विस्तार से अपने मन की बात रखना चाहूंगी।

क्या है कहानी

‘अ थर्सडे’  की कहानी एक गंभीर मुद्दे को छू रही है। फिल्म की कहानी नैना (यामी गौतम) की है, वह पेशे से प्ले स्कूल में टीचर है। वह तीन हफ्ते की छुट्टी से वापस आई है। ऐसे में उनके प्ले स्कूल में 16 बच्चे हैं और उनके पेरेंट्स इससे काफी खुश हैं कि नैना उनका अच्छे से ख्याल रखती है। नैना बच्चों को खूब प्यार देती भी है। लेकिन फिर इसी बीच उन्हीं बच्चों में से एक बच्ची निहारिका की प्री बर्थ डे सेलिब्रेशन की बात होती है। इस सेलिब्रेशन से ही नैना का बर्ताव में पूरी तरह से बदलाव आ जाता है। अचानक वह एक ऐसे आदमी को किडनैप कर लेती है, जो केक लेकर आता है। और फिर पुलिस स्टेशन में फोन कर देती है कि उसने सारे बच्चों को बंधक बना लिया है और एक ड्राइवर को भी। वह साफ़ कहती है कि उसकी कुछ मांगे हैं, जो पूरी की जानी चाहिए। वरना बच्चों को अपनी जान गंवानी पड़ेगी। हालात यह हो जाते हैं कि देश की प्रधानमंत्री माया राजगुरु (डिम्पल कपाड़िया) को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ता है। फिल्म की कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, आपको ऐसा महसूस होने लगता है कि जैसे आप किसी साइको महिला का थ्रिलर ड्रामा देख रहे हैं और यामी यानी नैना के किरदार ने वह पूरे एक्सप्रेशन भी कमाल के दिए हैं। वह एक मानसिक रूप से उत्पीड़न लड़की नजर आती हैं। लेकिन जब धीरे-धीरे यह परत खुलती है, आप सिर्फ और सिर्फ हैरान होते हैं। यह फिल्म समाज की सबसे बड़े मुद्दे को उठाती है, लेकिन चूँकि फिल्म थ्रिलर है तो मैं बहुत अधिक स्पोइलर दिए बगैर आपसे यही कहूँगी कि इस फिल्म को देख कर आप निराश नहीं होंगे। जावेद खान(अतुल कुलकर्णी) और नेहा धूपिया ने भी एक प्रेग्नेंट महिला पुलिस ऑफिसर का किरदार जिस संजीदगी से निभाया है, यह फिल्म को देखने लायक बनाते हैं।

बातें जो मुझे अच्छी लगीं

  • फिल्म के मेकर्स ने अच्छा रिसर्ज विषय पर किया है, साथ ही बेहतरीन तरीके से आंकड़ों के साथ अपनी कहानी के साथ न्याय करते हैं।  कई अच्छे वन लाइनर हैं, जो समाज, सिस्टम और एक आम आदमी से अहम सवाल करते हैं। फिल्म में हद से अधिक ड्रामा नहीं क्रिएट किया गया है।
  • फिल्म में कई सवाल, महिलाओं के साथ लगातार हो रहे बलात्कार के मुद्दे को लेकर किये गए हैं। क्या सिर्फ कैंडल मार्च ही ऐसी स्थिति में काफी है, इसे भी बिना सनसनी किये, प्रेजेंट किया गया है।
  • दो मुद्दे इसमें प्रमुखता से दिखाए गए हैं, जिसके बारे में अबतक किसी फिल्म में इतने साहस के साथ मेकर्स ने अपनी बात नहीं रखी है, इसलिए भी मुझे लगता है कि एक बार तो इस फिल्म को देखा जाना ही चाहिए।
  • फिल्म का अप्रोच एकदम रियलिस्टिक रखा गया है, थ्रिलर वाला अंदाज़ भी फिल्म अंत तक देखने के लिए प्रभावित करेगा।

अभिनय

यामी गौतम ने इस फिल्म में अपने करियर के बेस्ट परफॉर्मेंस में से एक दिया है। उन्होंने संजीदगी से विषय को समझा है और उसे महसूस करते हुए, उन्होंने अभिनय किया है। फिल्म के कुछ ऐसे इमोशनल दृश्य हैं यामी के, जिन्हें देख कर मैं बहुत इमोशनल हुई। नेहा धूपिया फिल्म में ध्यान आकर्षित करती हैं। इस फिल्म की किरदार आठ महीने प्रेग्नेंट हैं, यह मेरे लिए प्रेरणा की बात है कि दरसअल, नेहा भी इस फिल्म की शूटिंग में आठ महीने की वाकई में प्रेग्नेंट थीं और उन्होंने सारे दृश्यों को खड़े-खड़े निभाया है, इसके लिए उनकी जम कर तारीफ़ और उनके लिए खूब तालियां बजनी चाहिए, वह ऐसे ही और महिलाओं को प्रेरित करें। अतुल कुलकर्णी हमेशा की तरह ही अपने रंग में दिखे हैं। कुछ दृश्यों में वह भी इमोशनल करते हैं। डिम्पल कपाड़िया ने अपने किरदार को एकदम सहजता से निभाया है।

बातें जो और बेहतर हो सकती थीं

मुझे ऐसा लगता है कि इस फिल्म का विषय ही इतना स्ट्रांग है कि ‘अ वेडनेसडे’ जैसा नैरेटिव न भी चुना जाता, कोई और अंदाज़  जाता, तब भी कहानी प्रभावशाली तरीके से लोगों तक पहुँच सकती थी। साथ ही फिल्म की अवधि थोड़ी कम की जा सकती थी। बैकग्राउंड स्कोर एक थ्रिलर फिल्म की जान होता है, लेकिन उस पर खास ध्यान नहीं दिया है। फिल्म में और अधिक रोमांचक हिस्से हो सकते थे, लेकिन कहीं न कहीं कहानी में वह कमी खलती है।

वैसे कुछ कमियों के बावजूद फिल्म ने जिन मुद्दों को उठाया है, मेरा मानना है कि उस साहस के लिहाज से भी यह फिल्म देखी जानी चाहिए, ताकि ऐसे मुद्दे और अधिक उठें और लोग जागरूक हो सकें कि किसी भी मुद्दे का असली हल सिर्फ सोशल मीडिया पर नहीं, बल्कि ठोस होना चाहिए, एक प्रेरणास्रोत तो बनती है यह फिल्म।


फिल्म : अ थर्सडे

कलाकार : यामी गौतम, नेहा धूपिया, अतुल कुलकर्णी, डिम्पल कपाड़िया

निर्देशक : बेहजाद खंबाटा

ओटीटी चैनल : डिज्नी प्लस हॉटस्टार

मेरी रेटिंग 5 में 3 स्टार