इसे मैं एक बुरा संयोग ही कहूँगी कि यह फिल्म देख कर निकलने के बाद, यूं ही इंटरनेट पर सर्फिंग में हरियाणा के एक गांव की खबर पर नजर गयी, जहाँ लड़के-लड़की को ऑनर किलिंग के नाम पर जान से मार दिया जाता है, क्योंकि वह प्रेम कर बैठे थे। ‘लव हॉस्टल’ ऑनर किलिंग के ही भयावह रूप को दिखाती है। फिल्म का नाम भले ही लव हॉस्टल है, लेकिन यहाँ हर कोई प्यार का दुश्मन बना बैठा है। मैं इस फिल्म के निर्देशक की सबसे पहले इस बात के लिए सराहना करना चाहूंगी कि उन्होंने इस फिल्म में एक अहम दृश्य के माध्यम से, एक अहम कानून की बात की है, जिसके बारे में मेरे जेहन में कोई फिल्म नहीं आती है, जिसने इसका जिक्र भी किया हो कि अगर कोई बालिग़ दो लोग अपनी मर्जी से शादी करते हैं और उनका परिवार इसके खिलाफ है, तो वह कोर्ट में इस बात की अर्जी दे सकते हैं और कोर्ट से उन्हें सरकारी हॉस्टल में भेजा जाता है और उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी ली जाती है। इस नियम और कानून प्रावधान के बारे में अवगत कराना ऐसी फिल्मों के माध्यम से बेहद जरूरी है। ऑनर किलिंग के नाम पर पहले भी फिल्में बनती रही हैं, लेकिन इस फिल्म का ट्रीटमेंट इस कहानी को अलग अंदाज़ देता है। बॉबी देओल के खूंखार रूप ने फिल्म में काफी डराया है, उन्होंने अपने साथ अच्छा एक्सपेरिमेंट किया है। सान्या मल्होत्रा मुझे उनकी जेनेरेशन की अभिनेत्रियों में एक दम अलग ही लीग में जाती हुईं नजर आती है, इस फिल्म के चयन के बाद तो वह और उम्दा किरदारों की श्रेणी में आ गई हैं। विक्रांत मेसी एक मौक़ा नहीं छोड़ते हैं, खुद को बेस्ट साबित करने में। कुछ खामियों के बावजूद मुझे यह एक आवश्यक फिल्म लगी है आज के दौर के लिए। यह एक डार्क फिल्म है, लेकिन समाज के ऐसे डार्क चेहरों को दिखाने के लिए ऐसी फिल्मों का आना जरूरी भी है। दहशत से भरी इस फिल्म में कई इमोशनल मोमेंट्स भी हैं ।

Source : Instagram I @sanyamalhotra_

क्या है कहानी

फिल्म की कहानी हरियाणा की कहानी है, जहाँ आज भी सबसे ज्यादा ऑनर किलिंग के मामले, यानी कि अगर कोई लड़का या लड़की अपनी विरादरी से अलग किसी और विरादरी में शादी करता है या प्रेम करता है, तो उसे मौत के घांट उतार दिया जाता है।  यह कहानी एक मुस्लिम लड़के आशु शौकीन (विक्रांत मेसी) है और वह हिन्दू लड़की ज्योति ( सान्या मल्होत्रा ) से प्यार करता है।  लेकिन ज्योति का खानदानी परिवार, खासतौर से उसकी दादी इसके खिलाफ है। ज्योति निडर है, वह आशु से जाकर शादी करती है और वीडियो बना कर वायरल भी कर देती है कि अगर हमारे साथ कुछ होता है, तो इसके जिम्मेदार मेरे परिवार वाले होंगे। दादी कहाँ ऐसी धमकियों से डरने वाली है। वह उसके पीछे डागर( बॉबी देओल), जो कि एक खूनी और मर्डरर है।  वह उसे कॉन्ट्रैक्ट पर हायर करती है। उसे सुपारी देती है। डागर कुत्तों की तरह इन दोनों के पीछे पड़ जाता है,और फिर चूहे बिल्ली का खेल शुरू होता है।  इस पूरी कहानी में पुलिस का भी घिनौना चेहरा सामने आता है कि वह कैसे मासूमों के साथ अत्याचार करते हैं। ज्योति और आशु जब हॉस्टल पहुँचते हैं, तो उनके जैसे कई अन्य प्रेमी जोड़ी भी वहां होते हैं, जिनकी लम्बे समय से कोई सुनवाई नहीं हुई होती है। यह हमारे देश की लचर कानून व्यवस्था को भी दर्शाता है।

इन चूहे बिल्ली के खेल में क्या आशु और ज्योति का प्यार पूरा हो पाता है, मुझे लगता है कि इसके लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

बातें जो मुझे अच्छी लगी

  • फिल्म के एक सीन में जब पुलिस कहता है कि डागर हमारे हवाले कर दो, तो दादी घर के छोटे लड़कों की तरफ इशारा करती है कि इन सभी में डागर है, यहां निर्देशक ने मेटाफर के रूप में दिखाने की कोशिश की है कि  किस तरह यह नफरत की आंधी में नए जेनरेशन को भी खींच रहे हैं और किस तरह उन्हें भी गलत रास्ते पर ले जा रहे हैं और यही वजह है कि जेनरेशन दर जेनरेशन ऑनर किलिंग के मामले बढ़ते जा रहे हैं।
  • निर्देशक ने कहीं फ़िल्मी होने की कोशिश नहीं की है, एकदम रियल लोकेशन और रियल घटनाओं के तार जोड़े हैं, जो इस कहानी को पुख्ता बनाते हैं।
  • कहानी में कई अहम सामाजिक मुद्दों को भी उठाया गया है, निर्देशक इस पर अपनी बेबाकी से बात रखते हैं, यह निर्देशक की निडरता को दिखाता है और उनकी धर्म निरपेक्षता की सोच को भी दर्शाता है।
  • समलैगिंकता को लेकर भी समाज की सोच को फिल्म में दिखाने की कोशिश की गई है।
  • फिल्म का अंत बेहद खास है, ऐसे क्लाइमेक्स फिल्मों के विजन को सार्थक करते हैं। यहाँ एक सामाजिक मेसेज, एक चेतावनी और जिंदगी की बड़ी फिलॉसफी चंद दृश्य में ही दिखा दी गई है।
  • कुत्तों के माध्यम से डागर का कुत्तों के लिए प्रेम, इसे निर्देशक ने एक अच्छे मेटाफर के रूप में दिखाया है कि इंसानों से नफरत करने वाला, कुत्तों से क्यों प्यार करता है, यह मेटाफर फिल्म में क्यों है, मुझे लगता है यह फिल्म देखने के बाद आपको आसानी से बात समझ आ जाएगी।
  • तमाम दहशत के बीच ज्योति के पिता का किरदार एक उम्मीद लेकर आता है, अच्छा है निर्देशक ने एक उम्मीद के रूप में उनके किरदार को गढ़ा है कि कोई तो इस प्रथा को खत्म करने की कोशिश करेगा।
  • फिल्म की सिनेमेटोग्राफी फिल्म के दहशत को दर्शाने के लिहाज से एकदम परफेक्ट है, नैरेक्टिव और एक्शन भी दमदार है।

अभिनय

बॉबी देओल की इमेज मेरे मन में अबतक ऐसी ही रही है कि वह मासूम दिखते हैं, तो उनके लिए यह किरदार करना कठिन होगा, मेरे मन में संदेह था, लेकिन उन्होंने इस फिल्म में चौंकाया है, अपने खूंखार किरदार से वह हैरान करते हैं और उनके किरदार से नफरत हो जाती है। फिल्म में उन्हें कुछ डायलॉग्स मिले हैं, बाकी उन्होंने अपने एक्सप्रेशंस से ही सबको हैरान किया है। सान्या मल्होत्रा लगातार अपने किरदारों से चौंका रही हैं। उन्होंने इस फिल्म में एक बेबाक, निडर और बेखौफ ज्योति का किरदार निभाया है, अच्छा एक्शन भी किया है। सान्या का चुलबुलापन भी इस कहानी की जान है, विक्रांत के हिस्से में काफी कठिन दृश्य आये हैं, उन्होंने उन इमोशनल दृश्यों को बखूबी जिया है। दहशत और जुल्म सहते-सहते एक इंसान क्या हो जाता है, विक्रांत के किरदार में वह फ्रस्टेशन नजर आती है।

बातें जो और बेहतर हो सकती थीं

मुझे कहानी और घटनाओं की फिल्म में कमी लगी। फिल्म में ज्योति और आशु के बीच की केमेस्ट्री को और बेहतर तरीके से दिखाया जा सकता था। कुछ दृश्य जबरदस्ती दर्शकों के इमोशन खींचने के लिए गढ़े गए हैं।  

फिल्म : लव हॉस्टल

कलाकार : बॉबी देओल, सान्या मल्होत्रा, विक्रांत मैसी

निर्देशक : शंकर रमन

ओटीटी : ज़ी 5

मेरी रेटिंग 5 में से तीन स्टार