जब यह घोषणा हुई कि विद्या बालन और शेफाली शाह, दोनों एक फिल्म में साथ नजर आएँगी और जिस फिल्म का नाम होगा, जलसा’ मैं तो फिल्म को लेकर काफी उत्साहित थी और मैं बेहद खुश हूँ कि अब फिल्म देखने के बाद, इस बात पर विश्वास और हो गया है कि ऐसे क्या किरदार हैं, जो विद्या बालन और शेफाली शाह जैसी अभिनेत्रियां नहीं कर सकती हैं। फिल्म के शुरुआती दृश्य से लेकर अंतिम दृश्य तक, विद्या और शेफाली ने अपना बेस्ट दिया है। ऐसे में हाल ही में जब विद्या बालन से इस फिल्म के प्रोमोशन के दौरान बात हुई तो उन्होंने कई दिलचस्प बातें शेयर की, उन्होंने मुझसे शेयर किया कि वह इस वक़्त को महिलाओं के लिए बेस्ट समय मान रही हैं कि उन्हें इतने एक्सपेरिमेंट करने के मौके मिल रहे हैं। विद्या ने यह भी बताया मुझे कि एक दौर था, जब वह रिजेक्शन से इस कदर दुखी हो गई थी और बदसूरती की बात सुनती रहती थी कि उन्होंने आईना देखना छोड़ दिया था। विद्या ने आज जो यह मुकाम हासिल किया है, यूं ही नहीं किया है, कभी एक दौर था कि रिजेक्शन की वजह से वह धूप में पैदल कई घंटों तक चलती रह गई थीं। विद्या ने अपनी इस बातचीत में मुझसे अपने अब तक के सफर, ग्रे शेड, निर्देशन, लेखन, प्रोडक्शन और कई अनछुए पहलुओं पर बातचीत की है।

हम लड़कियां अधिक सोचती हैं दूसरों के बारे में

विद्या ने एक दिलचस्प बात यह बताई कि जब उनके पास ‘जलसा ‘का ऑफर आया था, पहले उन्होंने इसे करने से मना कर दिया था, उनका सोचना था कि पता नहीं लोग उन्हें ग्रे शेड्स में कैसे देखेंगे।

वह कहती हैं

हाँ, यह सच है कि मैंने पहले इसे करने से मना किया था, मुझे लग रहा था कि थोड़ा कैरेक्टर ग्रे है तो पता नहीं लोग मुझे किस तरह से लेंगे। लेकिन फिर जब कोविड महामारी आई, तो मेरी यह सोच बदली कि दूसरे आपके बारे में क्या सोचते हैं और आपको जज करते हैं, तो करें, तो अब मुझे फर्क नहीं पड़ता, फिर मैंने इस किरदार के लिए हां कह दिया। हम लड़कियां थोड़ा ज्यादा सोच लेती हैं कि लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे, जो कि नहीं सोचना चाहिए।

महिलाओं के लिए है बेस्ट समय

मैंने जब विद्या से जानना चाहा कि वह इस बात को महसूस करती हैं कि जब पुरुष नेगेटिव किरदार निभाते हैं, तो अमूमन उनकी तारीफ़ होती है कि डैसिंग लग रहे, एक्सपेरिमेंट्स किया है, लेकिन महिलाओं को वह जज करने लगते हैं।

Source : Instagram I @balanvidya

विद्या इस बारे में कहती हैं

मैंने इसके बारे में नहीं सोचा है, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि एक महिला के रूप में हम उन लोगों के बारे में ज़्यादा सोचते हैं, जो हमें पसंद करते हैं। हम चाहें या न चाहें, सब कॉन्सस में कहीं न कहीं हमारे यह बातें रहती हैं, लेकिन अब मुझे लगता है कि वक़्त बदल रहा है और हम भी। मेरा मानना है कि अभी  महिला एक्टर्स के लिए यह सबसे अच्छा समय है, क्योंकि महिलाओं के लिए शानदार किरदार लिखे जा रहे हैं, मेरा तो साफ़ पूछना है कि पुरुष एक्टर क्या कर रहे हैं? कहाँ हैं उनके रोल?  मेरा मतलब उनका अनादर करने से नहीं है, लेकिन उन्हें अभी भी वहीं उनके बनाये हुए ढाँचे में काम मिल रहा है, जबकि अभिनेत्रियों के लिए भर-भर कर, बहुत सारे लेयर्ड वाले किरदार लिखे जा रहे हैं, जहाँ हमें हीरोइन बनने से नहीं, बल्कि किरदार बनने में मजा आता है। मुझे तो बड़ा मजा आता है, जब मुझे  साधारण किरदार में एकदम अलग परफॉर्म करने का मौका मिलता है।

ओटीटी ने बदली है तस्वीर

विद्या मानती हैं कि ओटीटी की दुनिया ने कर दिए हैं बदलाव

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वह कहती हैं

मैं ओटीटी को एकदम ही अलग दुनिया मानती हूँ, आप इसकी तुलना किसी टेलीविजन से या फिल्म से नहीं कर सकते हैं।  मेरा मानना है कि इस माध्यम ने, कहानी कहने के मामले में स्टार, अवतार जैसी बातों को मिटा दिया है। यहाँ हर किसी के लिए जगह है। हर कोई लेयर्ड किरदार कर रहा है, अगर आपने हुनर है तो यह मीडियम है, जहाँ आप आसानी से खुद को दर्शा सकते हो। मुझे तो ऐसा लग रहा है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अलग ही प्रतिभाएं खुद को तैयार कर रही हैं। मैं इसे काफी अच्छा फेज मानती हूँ।

ए लिस्टर्स के साथ बहुत कम काम किया है

विद्या साफ़ कहती हैं कि उनके लिए जैसे किरदार लिखे जाते हैं, वह ए लिस्टर्स के साथ फिट नहीं बैठते हैं। मैंने अक्षय के साथ लेकिन मिशन मंगल की थी और इमरान के साथ भी की, लेकिन मैं तो शानदार कहानियों का हिस्सा बनती रही हूँ और वही मेरे लिए बेस्ट पार्ट है। वह कहती हैं कि मुझे वैसे ऑफर्स कभी नहीं मिले हैं, लेकिन मैं कहूँगी कि मैंने शानदार लोगों के साथ काम किया है।

मेल डोमिनेटेड इंडस्ट्री के बारे में दो टूक बातें

विद्या बालन ने साफ़ शब्दों में कहा कि बदलाव हो रहे हैं, कुछ भी एक दिन में नहीं बदल जाएगा

वह कहती हैं

बदलाव हो रहे हैं, लेकिन एक दिन में या एक रात में कुछ बदलाव नहीं होगा, मेरा मानना है कि श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित जैसे लोगों ने फीमेल ओरिएंटेड रोल्स किये हैं, उसके बाद, एक लम्बा गैप आया था, लेकिन उनसे पहले मीना कुमारी, हेमा मालिनी, रेखा, शबाना आजमी, जया बच्चन ने भी कमाल किया। उन्होंने एक स्पेस बनाया, हम जैसे लोगों के लिए, फिर कंगना, आलिया, दीपिका, तापसी पन्नू और ऐसी कई अभिनेत्रियों ने अपनी पहचान बनायीं।

शेफाली शाह के साथ पहले मैं नर्वस थी

विद्या ने बताया कि जब उन्हें पता चला कि शेफाली शाह हैं, तो उन्हें नर्वसनेस हुई थी, क्योंकि शेफाली शानदार अभिनेत्री हैं।

वह कहती हैं

मैंने मानव कॉल से सबसे पहले बात की और पूछा था शेफाली के बारे में, क्योंकि मैं उन्हें शानदार मानती हूँ तो नर्वस थी, लेकिन जिस दिन हम पहले दिन सेट पर मिले, उन्होंने मुझे गले लगाया, फिर हमारी जमने लगी। हमारे एक साथ ज़्यादा सीन नहीं हैं, लेकिन फिर भी एक खास बॉन्डिंग है, जो आपको फिल्म में देखने को मिलेगी, मुझे याद है कि मैं उनसे पहली बार 90 के दशक में अपने पहले टेलीविजन शो के लिए मिली थी, यह एक कैंपस आधारित शो था, हम एक कैफे में थे और उनके और एक अभिनेता के बीच एक सीन था,  मैंने उन्हें व्यक्तिगत रूप से प्रदर्शन करते देख रही थी और उन्होंने जैसे सीन दिए थे, वह कमाल के थे। जब भी मैं उन्हें स्क्रीन पर देखती हूं, वह कुछ कमाल ही कर रही होती हैं।

शुरुआती दौर के रिजेक्शन अब काम आये हैं

विद्या ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एक बड़ा मुकाम, अपने दम पर हासिल किया है, लेकिन उन्होंने इसके लिए काफी मेहनत भी है,  शुरुआती दौर में तो उन्हें काफी रिजेक्शन हुए थे, ऐसे में विद्या ने बाद में ऐसे कई प्रोड्यूसर्स को लौटा भी दिया था, जिन्होंने उनको पहले अपनी फिल्मों से हटाया था। विद्या ने वह मोमेंट शेयर किया, जब एक बार दुखी होकर वह मरीन लाइन से बांद्रा पैदल चली आई थीं ।

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वह बताती हैं

2003- 2004 की बात है।  मैंने के भाकलचंदर के साथ दो फिल्में साइन की थीं। उस वक़्त मुझे ज्यादातर फिल्मों में रिप्लेस किया जा रहा था।  मुझे पता चला कि के भालचंदर की फ़िल्म में भी मुझे रिप्लेस किया गया है और मुझे बताया तक नहीं गया था, आखिरकार मेरी माँ ने के भालचंदर की बेटी को फोन किया और उससे पूछा तो मालूम पड़ा कि मुझे हटा दिया गया है।  मैं उस दिन बहुत गुस्से में थी, मैंने तेज चलना शुरू किया, तेज धूप थी। मैंने मरीन लाइन से चलना शुरू किया तो, चलते-चलते मैं बांद्रा पहुंच गयी और महसूस किया कि शाम होने वाली है और मैं ना जाने कितने घंटों से चल ही रही हूं। उसके बाद मैं खूब रोयी, लेकिन अब वे यादें धुंधली हो गई हैं। जब मैं कामयाब हुई तो, तो एक प्रोड्यूसर ने जब मुझे अपनी फिल्म में रिप्लेस किया, तो उनका बर्ताव मुझसे बहुत बुरा था,  उसने मुझे इतना बदसूरत महसूस कराया था कि छह महीने तक मेरी हिम्मत नहीं हुई कि मैं खुद को आईने में देख सकूं।  मैं यह बात नहीं भूल पाती हूँ।

विद्या कहती हैं

मुझे भी ऐसा ही लगता है कि अगर मैंने संघर्ष न किया होता तो मुझे वे अनुभव नहीं मिलते। अगर मेरे साथ ऐसा नहीं होता, तो शायद मैं आज मैं एक अलग अभिनेत्री और इंसान होती थी।

विद्या इस बात को स्पष्ट तरीके से रखती हैं कि उन्हें निर्देशन में दिलचस्पी नहीं है और न ही प्रोडक्शन में, वह हँसते हुए कहती हैं कि मैं हमेशा सिर्फ अभिनय करते रहना चाहूंगी।

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हूँ मैं रिबेलियस

विद्या कहती हैं

हाँ, मैं रियल लाइफ में थोड़ी रिबेलियस हूँ, लेकिन मैं वैसे निर्देशकों के साथ काम नहीं करती हूँ, जिनसे मेरे वाइब्स नहीं मिलते हैं, क्योंकि दो महीने बहुत होते हैं, इसलिए मेरे लिए वाइब्स मिलने जरूरी हैं।

वाकई में, विद्या से जितनी मुलाकातें होती हैं, ऐसा लगता है कि बस उनसे और बातें की जाएँ, वह जिस तरह की अभिनेत्री हैं और जिस तरह से वह हर बार अपने किरदारों से चौंकाती हैं, मैं तो उनकी हमेशा फैन रहूंगी, ‘जलसा’ देखने के बाद, उनके लिए मेरा प्यार और बढ़ गया है और यकीन मानिये, आप भी जब फिल्म देखेंगे तो आपको भी कुछ ऐसा ही लगेगा।

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