वर्तमान दौर में एस एस राजामौली जैसे फिल्मकारों की बेहद जरूरत है। मैं ऐसा इसलिए कह रही हूँ कि मेरा मानना है कि एक फिल्म मेकर का मकसद केवल फिल्मों से पैसे कमाना नहीं होता है, बल्कि अपना एक प्रोस्पेक्टिव देना भी होता है। सिनेमा, एकता और अखंडता की बात करें, तो ऐसा लगता है कि हम एक सार्थक दुनिया में जी ले रहे हैं। राजामौली, अपनी फिल्म ‘आरआरआर’ से पहले ही चंद दृश्यों में स्पष्ट करते हैं कि हमारे देश में एकता में ही बल है और वह रहनी चाहिए, हर मजहब को सम्मान देने वाली यह फिल्म वर्तमान दौर में छोटी सी ही सही, लेकिन एक उम्मीद जरूर जगा देती है कि इतिहास गवाह रहा है कि हम धर्म निरपेक्ष देश के वासी रहे हैं, तो मेरी तरफ से प्यार का यह अलख जगाने के लिए बेहद शुक्रिया राजामौली को। अब बात करती हूँ, फिल्म की। बहुप्रतीक्षित फिल्मों में से एक राजामौली की यह फिल्म ‘आरआरआर’ देशभक्ति की गाथा कहने के साथ-साथ, भाईचारे, दोस्ती और देश के लिए बलिदान देने की गाथा कहती है। जाहिर है कि ‘बाहुबली’ के निर्देशक राजामौली की फिल्म जब मैं देख रही हूँ, तो मुझे उनसे पूरी उम्मीद यही रहेगी कि वह अपने कैनवास में सबकुछ लार्जर देन लाइफ दिखाएं। और मैं खुश हूँ कि उन्होंने मुझे निराश नहीं किया है। राजामौली की इस फिल्म से एक बात और खूबसूरती से सामने आई है कि किस तरह, अपने जल, जमीन और जंगल से जुड़े रहना, आपके असली अस्तित्व की पहचान है। साउथ इंडियन फिल्म मेकर्स रामचरण और जूनियर एनटीआर की यह देशभक्ति वाली फिल्म में उनके फैंस के लिए वह सबकुछ है, जिसकी वह उनसे उम्मीद करते हैं। अजय देवगन अपने चंद दृश्यों से हैरान करते हैं, आलिया भट्ट की मौजूदगी उनके फैंस को आकर्षित करेंगी। मुझे फिल्म कैसी लगी, मैं यहाँ विस्तार से बता रही हूँ।

Source : Instagram I @alwaysramcharan

क्या है कहानी

फिल्म की कहानी दो असल क्रांतिकारी अल्लुरी सीता रामा राजू और कोमुराम भीम दो अनसंग हीरोज के रेफरेंस को लेकर, फिर राजामौली ने इसे अपनी काल्पनिक दिशा दी है, कहानी राजू उर्फ़ राम ( रामचरण ) और भीम ( जूनियर एनटीआर) इन दो किरदारों के इर्द-गिर्द है। फिल्म का पूरा मजमा देशभक्ति पर आधारित है। यह कहानी प्री इंडिपेंडेस से पहले की कहानी है, जब अंग्रेजी शाषक, हम भारतीयों को बंधुआ मजदूर समझ कर, हम पर लगातार अत्याचार करते थे। एक आदिवासी जंगल में अंग्रेजी शाषक, अपने शौक को पूरा करने आते हैं। वहां एक प्यारी बच्ची वल्ली का  गाना, उस अंग्रेज अधिकारी को इस कदर पसंद आ जाता है कि वह उसे बंदी बना कर, अपने साथ ले जाती है, या यूं कहें, अपहरण करके ले जाती है। भीम, सबका मसीहा है और वह गांव में ही पला बढ़ा है, वह अख्तर का वेश बना कर, आम आदमी बन कर दिल्ली जाता है, जहाँ वह वल्ली को बचाने के लिए कोई भी कसर छोड़ना नहीं चाहता है। इसी बीच राम की पैरलल कहानी चल रही है, जो अंग्रेज हुक्मरान के साथ एक पुलिस ऑफिसर है। वह एक अलग ही मकसद लेकर आया है। हर हाथ में हथियार देने का उसका सपना उसे उसके पिता बाबा ( अजय देवगन ) से मिली है , वह एक बड़े मकसद के लिए, अंग्रेजों के बीच रह कर, बड़ा सपना देखता है। सीता ( आलिया भट्ट) उसकी साथी है, जो इस देशभक्ति के आंदोलन में उसे पूरी तरह से सपोर्ट करती है। किस तरह यह दो महत्वपूर्ण किरदार मिल कर, अंग्रेजों के छक्के छुड़वाते हैं, यह देखना फिल्म में दिलचस्प है। जल और आग के संगम को किस खूबसूरती से निर्देशक ने इन दो किरदारों के माध्यम से दर्शाया है। दोस्ती, प्यार, बलिदान और इन सबके बीच सर्व धर्म एक समान, अपनी जमीन पर जान लूटा देने वाली यह फिल्म कई मायनों में एक मिसाल है। इन सबके बीच, एक लड़की, जैमी, जो बेहद प्यारे दिल की है, उसका होना इस फिल्म से यही दर्शाता है कि अच्छे दिल के लोग हर जगह होते हैं। भारतीयों के आंदोलन को जल, जंगल, जमीन के माध्यम से जोड़ते हुए खूबसूरती से दिखाया गया है फिल्म में।

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बातें जो मुझे बेहतरीन लगीं

  • फिल्म की सबसे बड़ी खूबसूरती, फिल्म के कैनवास का लार्जर देन लाइफ होना है, लेकिन उससे ज्यादा यह कॉन्ट्रास्ट खूबसूरत है कि जल, जमीन और जंगल यानी आपके रूट्स की बात हो रही है, निर्देशक स्पष्ट है अपने अप्रोच में कि वह क्या कहानी कहना चाहते हैं। आदिवासियों को केंद्र में रख कर, कितनी ही फिल्में बनती हैं।
  • लगातार कई दृश्यों में निर्देशक ने कोशिश की है कि हर धर्म का सम्मान किया जाये, वह चाहते तो, इसे नजरअंदाज भी कर सकते थे,लेकिन उन्होंने इस बात को अहमियत दी है कि आजादी की लड़ाई में हर धर्म में साथ दिया, सब मिल कर रहें और किस तरह एक दूसरे में भाईचारा रहा है, मेरे लिए इस फिल्म की सबसे बड़ी कामयाबी यही है।
  • फिल्म का कैनवास जबरदस्त है, फिल्म में कई चौंकाने वाले दृश्य हैं, जो आपको सिनेमेटिक अनुभव देंगे, मेरे लिहाज से तो ऐसी फिल्में केवल बड़े परदे पर ही देखी जानी चाहिए। स्केल बेहद बड़ा है, कुछ ऐसे कमाल के एक्शन दृश्य हैं, जो इससे पहले फिल्मों में न के बराबर दिखाए गए हैं। शेरों के साथ वाला दृश्य, फिल्म के क्लाइमेक्स वाला दृश्य काफी भव्य पिक्चराइजेशन है, जो बेहद अलग अनुभव देता है। इसके अलावा जूनियर एनटीआर और रामचरण ने एक दूसरे के साथ जो दृश्य फिल्माए हैं, वह एक्शन भी अनोखा है।
  • फिल्म का गाना नाचो-नाचो का भी जो पिक्चराइजेशन है, कमाल का है, दोनों ही अभिनेताओं ने इसमें जबरदस्त तरीके से परफॉर्म किया है।
  • अजय देवगन की मौजूदगी ने फिल्म को और अधिक भव्य बनाया है।
  • भव्यता को दिखाते हुए, अपनी मूल संघर्ष की कहानी से नहीं भटके हैं निर्देशक
  • फिल्म के कुछ शुरुआती दृश्य में निर्देशक ने स्पष्ट कर दिया है कि यह फिल्म देशभक्ति के साथ-साथ इंसानियत का जश्न मनाती है।
  • फिल्म के कुछ दृश्य काफी इमोशनल करते हैं, जब राम अपनी माँ को आँखों के सामने मरते देखता है, लेकिन पिता के कहने पर, वह देश के लिए फर्ज पहले निभाता है।
  • फिल्म का अंतिम क्रेडिट सांग, एक अच्छा आई कैंडी है।
  • रामायण का संदर्भ भी रोचक बनाता है फिल्म को।
  • राम और भीम नाम से किरदारों के नाम का चयन भी अपने आप में एक साहसिक सोच है। एक खूबसूरत मेल को यहाँ निर्देशक ने जातिवाद से ऊपर उठ कर दिखाने की कोशिश की है।

अभिनय

इस फिल्म में दो ऐसे महारथी कलाकार हैं, रामचरण और जूनियर एनटीआर, दोनों का ही काफी बड़ा ऑरा है, इंडस्ट्री में। ऐसे में उन्होंने अंडर प्ले वाले किरदारों को बखूबी निभाया है। खासतौर से जूनियर एनटीआर ने अपनी इमेज से एकदम अलग हट कर काम किया है। रामचरण के किरदार में गुस्सा, जज्बा, सब कुछ खो देने के बाद भी खुद में देशभक्ति की ललक को जगाये रखता है। यह दोनों ही इस फिल्म की जान हैं। अजय देवगन की चंद दृश्यों में ही मौजूदगी, उनके किरदार को सशख्त बनाती है, यह उनके अभिनय की खूबी है कि वह कम समय के लिए ही स्क्रीन स्पेस में नजर आएं, लेकिन अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कर देते हैं। आलिया भट्ट, एक ऐसी अभिनेत्री हैं कि वह जब भी अभिनय करती हैं, छा जाती हैं, उन्होंने कम दृश्यों में सार्थक काम किया है। उन्हें देख कर लग रहा है कि फिल्म में वह और अधिक स्क्रीन स्पेस के साथ होतीं तो और मजा आता ।

बातें जो फिल्म को और बेहतर बनाने की गुंजाईश रखते हैं

फिल्म की कहानी में लेयर्स नहीं है, काफी दोहराव हैं, एक ही लेयर में कहानी बढ़ी जाती है और इसकी वजह से कहानी कुछ समय बाद बोरिंग भी लगने लगती है, अगर विजुअल अनुभव न हो, तो फिर यह फिल्म कहानी के लिहाज से कमजोर होती। फिल्म में काफी रोमांचक प्लॉट्स नहीं हैं, उसकी कमी काफी खलती है। अगर कहानी पर भी थोड़ा और काम होता, फिल्म और बेहतर होती। थोड़ा और संघर्ष दिखाया जाता, तो फिल्म और दिल को छूती। आलिया भट्ट के किरदार को विस्तार दिया जा सकता था, आजादी की कहानी में महिलाओं के योगदान को कम याद किया जाता है, ऐसे में राजामौली सीता के किरदार और श्रिया शरण के किरदार के साथ वह काम कर सकते थे। मकरंद देशपांडे के किरदार के साथ भी कुछ न्याय किया जा सकता था।

फिल्म : आरआरआर

कलाकार : रामचरण, जूनियर एनटीआर, आलिया भट्ट, अजय देवगन, मकरंद देशपांडे

निर्देशक : एस एस राजामौली

मेरी रेटिंग 5 में से 3.5 स्टार