ऐसी कम अभिनेत्रियां हैं, जो इस इंडस्ट्री में अपने लिए एक ही शर्त बना कर चलती हैं कि उन्हें अपना बेस्ट देना है, फिर चाहे, उन्हें कम फिल्में ही मिलें, उन्हें फर्क नहीं पड़ता है। निम्रत कौर, वैसी ही अभिनेत्रियों में से एक हैं, जिन्होंने अपनी प्रोफ़ाइल में अच्छी फिल्मों की फेहरिस्त बढ़ाई है, निम्रत ने मुझसे अपनी बातचीत में एक दिलचस्प बात शेयर की कि आर्मी बैकग्राउंड होने की वजह से, उन्हें एक्टर बनने में किस तरह से मदद की है, कम्फर्ट जोन में रहना आखिर निम्रत को क्यों पसंद नहीं है और यही वजह है कि उन्होंने अभिषेक बच्चन के साथ फिल्म दसवीं में कॉमेडी जॉनर को एक्सप्लोर करने के बारे में सोचा, निम्रत से वाकई, इस बातचीत में उनके व्यक्तित्व के अलग पहलुओं को जानने का मौका मिला, मैं उनसे बातचीत के कुछ दिलचस्प पहलू यहाँ शेयर कर रही हूँ।

खुद को करना है एक्सप्लोर, हीरो की पत्नी वाले किरदार नहीं हैं निभाने

निम्रत एक बात से स्पष्ट हैं कि भले ही उनको कम मौके मिले, फिल्मों में अभिनय करने के लिए, लेकिन वह अब हीरो के लिए सिर्फ नाम की बीवी बन कर, उन्हें सांत्वना देने कि हाँ-हां हिम्मत मत हारो, वाले रोल्स नहीं कर सकती हैं।

वह कहती हैं

मैंने ऐसा कॉन्सस होकर कोई निर्णय कभी नहीं लिया कि मैं बॉलीवुड में कम काम करूंगी या फिर मैं सिर्फ बाहर ही काम करूंगी। ऐसा नहीं है कि मुझे सिर्फ बाहर का ही काम अच्छा लगता है। लेकिन मैं यहाँ भी जम कर काम करना चाहती हूँ, लेकिन मुझे जिस तरह के ऑफर आ रहे थे, अब तक, मैं वैसी फिल्में अब नहीं करना चाहती हूँ।  मेरी अब तक यहाँ सिर्फ तीन ही फिल्में हुई हैं। लेकिन मैं वैसे किरदार, जिसमें हीरोइन को कहा जाता है कि आपको हीरो की हिम्मत बढ़ानी है, सांत्वना देना है, तो वैसे किरदार और नहीं करूंगी। मुझे कम लेकिन अच्छे प्रोजेक्ट्स करने हैं।
Source : Instagram I @nimratofficial

दसवीं कर रही है मुझे एक्सप्लोर

निम्रत कहती हैं कि हिंदी फिल्मों में गौर करें, तो वैसे किरदार कम लिखे जाते हैं, महिलाओं के लिए कॉमेडी में, जहाँ उन्हें ड्रिवेन करने का मौका मिले सीन को।

वह इस बारे में विस्तार से समझाती हैं

हिंदी सिनेमा में आप देखें तो महिलाओं को ध्यान में रख कर, उनके लिए कॉमेडी सीन्स नहीं लिखे जाते हैं। या तो उन पर जोक्स बनाये जाते हैं या फिर वह हीरो की कॉमेडी को सपोर्ट करती हुईं नजर आती हैं।
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वह कहती हैं

एक्ट्रेस हमेशा से यह तो कॉमेडी सीन्स के लिए ऑब्जेक्ट रही है, या सब्जेक्ट रही है, जबकि कॉमेडी करना बहुत कठिन है। हमलोग अक्सर यह देखते हैं कि हीरो ही कॉमेडी सीन को आगे बढ़ाते हैं, जबकि एक्ट्रेस पर जोक्स हो जायेंगे। लेकिन ऐसा मुश्किल से होता है। लेकिन मैं शुक्रगुजार हूँ, दसवीं के मेकर्स की कि उन्होंने मुझे यह मौका दिया है।  मैं ऐसा नहीं कह रही हूँ कि मारधार वाले सीन्स फिल्माना कठिन नहीं होता है, सीरियस सीन्स फिल्माना कठिन नहीं होता है, लेकिन कॉमेडी एक कठिन जॉनर हैं और एक्ट्रेसेज को इसमें एक्सप्लोर करने का मौका मिलना चाहिए।  मुझे तब्बू का विरासत वाला रोल, श्रीदवी का रोल बेहद पसंद आया था। मेरिल स्ट्रिप जब आती हैं स्क्रीन पर, तो कमाल करती हैं कॉमेडी में। मैं वैसे काम करना चाहती हूँ।

स्टीरियोटाइप बनना एक कॉम्प्लिमेंट

निम्रत कहती हैं कि लंचबॉक्स के बाद, उन्हें लगातार वैसी ही फिल्में ऑफर होने लगी थी, इसलिए वह वैसी फिल्म नहीं कर पायीं

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वह कहती हैं

क्योंकि आप जब एक फिल्म करते हैं और आपका काम पसंद आता है तो फिर मेकर्स आपको उसी नजरिये से देखने लगते हैं, कहीं न कहीं यह अच्छी बात भी है, एक कॉम्प्लिमेंट है, क्योंकि अगर कोई आपसे कनेक्ट नहीं करेगा, तो फिर वह इमेज नहीं बनती है। हां, लेकिन यह एक्टर के लिए पूरी तरह से बोरिंग हो जाता है कि वह एक ही तरह का काम करें, इसलिए वह किसी इमेज में खुद को बांधना नहीं चाहते हैं। यही वजह है कि मैंने भी आधे मन से वे सारे काम नहीं किये। लेकिन जब आपके पास दसवीं जैसी फिल्म आती है, तो आपको लगता है कि कोई आप पर ट्रस्ट कर रहा है कि आप कॉमेडी भी कर सकते हो।

वह आगे कहती हैं

मेरे पास जब दसवीं फिल्म आई थी और मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी थी, मेरे दिमाग में बार-बार यह बात आ रही थी कि फिल्म का कॉन्ट्रैक्ट जल्दी हो जाये, कहीं मेकर्स अपना मन न बदल लें, क्योंकि कम ही ऐसा होता है कि आपको लेकर ऐसे एक्सपेरिमेंट कोई मेकर करें।

दसवीं का किरदार है गिफ्ट

निम्रत बताती हैं कि उनके लिए यह फिल्म गिफ्ट है, क्योंकि वह आर्मी बैकग्राउंड की अर्बन कल्चर से बिलोंग करने वाली लड़की रही हैं, ऐसे में इस फिल्म से काफी नया सीखने का मौका मिला है।

वह कहती हैं

मेरे लिए यह गिफ्ट की तरह का किरदार है, मैं इस पार्ट से खुद को रिलेट नहीं कर पाती हूं। इसलिए मैंने इसमें खुद को एकदम स्क्रेच से इमेजिन किया है। मैं कॉन्वेंट में पढ़ी, अर्बन लड़की हूँ, ऐसे में  मेरे लिए देसी किरदार करना कठिन था। चैलेंजिंग था। इस फिल्म में मैंने इसलिए वजन नहीं बढ़ाया कि वहां की लड़कियां ऐसी ही होती हैं, बल्कि इसलिए वजन बढ़ाया कि मैं थोड़ा अपने से दूर जा सकूं। मैंने टेस्ट केस में भी ऐसा किया था । मैंने खुद को फिजिकली ट्रांसफॉर्म किया था, ताकि मैं खुद भी अपने किरदार से रिलेट न करूँ और एकदम अलग कर जाऊं अरु वह भी कन्विक्शन के साथ। वैसे मेरे पापा के साथ मैंने बचपन में गांव की खूब सैर की है। दादी के साथ खेतों में जाना, पम्प से पानी निकालना यह सबकुछ किया है। गांव के लोगों की मासूमियत हमेशा आकर्षित करती है।
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पब्लिक टॉयलेट की समस्या

निम्रत कहती हैं कि उनका पॉलिटिक्स में कभी भी जाने का कोई इरादा नहीं है। वह फिल्म दसवीं में एक पॉलिटिशियन का ही किरदार निभा रही हैं। ऐसे में वह कहती हैं कि अगर उनको कभी काल्पनिक रूप से यह मौका मिला, तो वह इन दो मुद्दों पर काम करना चाहेंगी।

वह कहती हैं

मैंने काफी रोडट्रिप्स किये हैं और मैंने देखा है कि भारत में पब्लिक टॉयलेट की जो स्थिति है, वह काफी बुरी है। ऐसे में बेहद जरूरी है कि उनपर काम किया जाये, तो मैं इस पर काम करवाती, मैं रोड ट्रिप्स पर जाती हूँ, तो देखती हूँ, जो स्थिति है, वह बहुत बुरी है। साथ ही मैं एजुकेशन को लेकर काम करवाना चाहूंगी।

हॉलीवुड में पलकों पर बिठा कर रखते हैं

निम्रत अपने हॉलीवुड और विश्व सिनेमा इंडस्ट्री में काम करने के अनुभव के बारे में कहती हैं कि वह मुझे पलकों पर बिठा कर रखते हैं, बहुत कम्फर्ट देते हैं और हर आर्टिस्ट का बराबर सम्मान करते हैं।

आर्मी बैकग्राउंड के होने से एक्टर बनने में होती है मदद

निम्रत कहती हैं कि वह चूँकि आर्मी बैकग्राउंड से हैं, तो उनको एक्टर की जिंदगी जीने में काफी मदद मिलती है। वह दोनों में समानताएं बताती हैं

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वह कहती हैं

बचपन से आर्मी वाले, कम्फर्ट जोन में रहना पसंद नहीं करते हैं। ऐसे में जब आप एक्टर बनते हैं, तो आपके लिए उस माहौल में बने रहना, जहाँ हर दिन कुछ अलग होगा, मदद मिलती है, आप हर सिचुएशन को फेस करने के लिए तैयार रहते हैं। एक्टर्स बनना आसान नहीं होता है, कल आपको नहीं पूछता है, आपके अपने लोगों से दूर होना पड़ता है। अकेलापन होता है और यह सब झेलना आसान नहीं होता है। बहुत जिगर चाहिए बहुत करेज चाहिए। एक एक्टर की जिंदगी आसान नहीं होती है। ऐसे में जो आर्मी बैकग्राउंड है। खासकर लड़कियों के लिए, एक क्वालिटी के साथ आपको अप ब्रिंगिंग मिलती है। मेरे पिताजी ने मुझे कभी यह महसूस नहीं कराया कि मैं लड़की हूं। मैं तो एक चाइल्ड जैसी पली हूं। हॉर्स राइडिंग से लेकर ऐसा क्या नहीं है, जो मैंने नहीं किया है। लड़का लड़की वाली हमारे यहां कोई बात ही नहीं थी। यही वजह है कि इंडस्ट्री में जितनी भी लड़कियां हैं, उनका एक प्वाइंट ऑफ व्यू है और अपना एक टेक रखती हैं। हमलोग लिबरल और फॉरवर्ड सोच रखती हैं। यह एक परवरिश का ही नतीजा है कि कभी आप यह न सोचें कि अरे लड़की होने के बावजूद यह कर सकती है।

वाकई, निम्रत की हर बात इंस्पायर करती है। उनका अपना एक नजरिया है और खुद को प्रेजेंट करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ती हैं, यही वजह है कि उनकी वह मेहनत और कन्विक्शन उनके किरदारों में भी नजर आती है। मैं तो उनकी फिल्म दसवीं, जो कि 7 अप्रैल को जियो सिनेमा और नेटफ्लिक्स पर रिलीज होने वाली है, उसे देखने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रही हूँ।