मिडिल क्लास का दुःख और सुख दोनों ही सार्वजनिक होता है, गुल्लक सीजन 3 वेब सीरीज में यह पंक्ति सबसे आखिरी एपिसोड में सुनाई देती है, लेकिन यही इस बार गुल्लक सीजन 3 का असली सार है। मैं खुद मिडिल क्लास से हूँ, शायद इसलिए मेरा अपना नजरिया है कि मिडिल क्लास घरों में अगर कहीं अचार भी बनते हैं, तो पड़ोस के वर्मा जी के लिए भी एक बोयाम तैयार रहता है, मोहल्ले में किसी बेटी की शादी है, मतलब पूरे मोहल्ले का परिवार साग-सब्जी से लेकर, बिस्तर तक के इंतजाम में जुट जाता है, फलनवां ने चिलनवा के बारे में पीठ पीछे जो कहा हो, लेकिन फलनवा चिलनवा के बीमार पड़ने पर हॉस्पिटल भी दौड़ेगा। किसी के बीमार पड़ने पर, पड़ोसी अगर मिलने आये हैं, तो उनके हाथों में गुलाबों की खुशबू वाला गुलदस्ता नहीं, एक किलो संतरा की थैली वाला बुके जरूर नजर आएगा। और दरअसल, वह जो संतरे की थैली से खुशबू आ रही होती है न, वह संतरे की नहीं,  मिडिल क्लास का सबकुछ, सबके बीच होना, सबका होना की खुशबू होती है, जो सबके बीच ही घुलती जाती है। फैलती जाती है।  मिडिल क्लास का अपना लोकतंत्र चलता है, जहाँ एक दूसरे की खुशियों के लिए कॉम्प्रमाइज करना कोई क्रांति नहीं, बल्कि अपनेपन की शांति है। मिडिल क्लास का हिसाब यहाँ तब नहीं गड़बड़ाता है, जब सेविंग अकाउंट में पैसा कम आता है, बल्कि किसी की तबियत ख़राब हो जाये तो जान पर बन आती है। मिडिल क्लास के कुछ ऐसे ही ताने-बाने को लेकर, जिंदगी के फलसफे से अक्कड़ बक्कड़ खेलती, एक बार फिर से गुल्लक सीजन 3 आई है, जहाँ मिश्रा परिवार में इस बार सेविंग अकाउंट के साथ, मामला थोड़ा गंभीर भी हुआ है। गीतांजलि कुलकर्णी, जमील, वैभव और हर्ष के सहज अभिनय से एक बार फिर से मन मोह लेते हैं। इस बार इमोशंस के साथ-साथ और भी कई नए एंगल इस कहानी को और खास बना देते हैं। इस शो को पूरे परिवार के साथ देखने की राय मैं क्यों दे रही हूँ, मैं यहाँ विस्तार से बता रही हूँ।

क्या है कहानी

इस बार मिश्रा जी के परिवार में अन्नू मिश्रा (वैभव) सेविंग अकाउंट बन गए हैं, यानी उनकी नौकरी लग गई है, उधर अमन  मिश्रा (हर्ष) इस बात से परेशान हैं कि टॉपर होने के बावजूद उनको साइंस नहीं पढ़ना है, लेकिन टॉपर है भला आर्ट्स कैसे पढ़ सकता है, तो अमन मिश्रा की अपनी जद्दोजहद चल रही है। संतोष मिश्राजी ( जमील खान), लगातार अपना पासबुक चेक कर रहे हैं कि आखिर अमन का एडमिशन कैसे हो, शांति ( गीतांजलि कुलकर्णी) घर की बागडौर संभालने में लगी हैं। इन सबके बीच, घर में  फुर्तीली की एंट्री होती है, वह मिश्राजी के दोस्त की बेटी है, शादी के लिए आये हैं, लेकिन लड़के को लड़की का फुर्तीली नाम पसंद नहीं आता है, फुर्तीली अपनी बात शांति को बातों-बातों में बताती है, अब यहाँ यह देखना दिलचस्प है कि लड़की क्या अपने मन की बात रखने में कामयाब हो पाती है। इधर मिश्रा जी को हार्ट अटैक आया है और घर पूरी तरह हिल गया है, वजह क्या है, यह आपको कहानी देखने के बाद ही पता चलेगी, मेरे बताने से मजा किरकिरा होगा, ऐसे में अमन पर बड़े बेटे की जिम्मेदारी कैसे आती है और मामला कैसे भावनात्मक होता है, इस बार पांच एपिसोड में कहानी आप तक पहुँचती है।

बातें जो मुझे बेहद पसंद आयीं

  • लेखक और निर्देशक यानि पूरी सीरीज के मेकर्स की तारीफ़ होनी चाहिए कि उन्होंने इस बार फुर्तीली के ट्रैक को जोड़ कर, एक बड़ा स्टैंड लिया है, मिडिल क्लास में आज भी कैसे शादी के लिए केवल लड़कों की मर्जी पूछी जाती है और उनके नॉट श्योर से शादी टूट जाती है, इस बार उन तमाम,  जो अपने परिवार के दबाव में आकर शादी करती हैं, उनके बदले शांति देवी के किरदार से नॉट श्योर बोल कर, उन सबकी लड़कियों की आवाज बने हैं, बतौर एक कहानीकार, यह भी एक जिम्मेदारी बनती है कि हर बार जरूरी नहीं कि झंडा उठा कर ही क्रांति की जाए, मिडिल क्लास में ऐसी ही छोटी लेकिन ठोस क्रांति की जरूरत है।
  • कहानी में बेहद खूबसूरती से रिश्ते के ताने-बाने को बुना गया है कि अपनों के साथ, जो भी मौके मिले, जी लें, अगले पल जिंदगी क्या करवट लेगी, पता नहीं होता है।
  • समाज, पड़ोस और उनके पीछे छुपी भावना और इंसानीयत ही मिडिल क्लास की कुंजी है, मेकर्स ने इसे खूबसूरती से स्थापित किया है।
  • एक लड़का जो कि टॉपर है, उसका आर्ट्स लेना क्यों आज भी एक टैबू है, मिडिल क्लास मानसिकता को अच्छे से दर्शाया गया है।
  • सैलेरी आई नहीं कि यहाँ सपने नहीं, जिम्मेदारियां क्रेडिट होने लगती हैं, खासतौर से एक बड़े बेटे के अकाउंट में, इस सिचुएशन को भी, सीरीज  खूबसूरती से प्रेजेंट करती है।
  • जिंदगी में परेशानियां हैं, जिम्मेदारियां हैं, लेकिन अपनों के बीच ही खुशियां हैं, इसे छोटे-छोटे दृश्यों से ही सार्थक रूप से स्थापित किया गया है।
  • लोकेशन से लेकर, चाय की प्याली तक, अचार के बोयाम तक में बारीकियों का ध्यान रखा गया है, हाँ सत्यनारायण कथा के पूरे दृश्य को गढ़ने में कुछ चूक हुई है।

अभिनय

इस बार सीरीज में सबसे अधिक कोई निखर कर आते हैं तो वह हैं वैभव राज, यानी शो के अमन मिश्रा। उन्होंने बड़े बेटे बनते ही कैसे अचानक से घर की जिम्मेदारियों को तव्वजो देना शुरू किया है, यह उनके पिछले सीजन से एकदम अलग अवतार है, वह इमोशनल सीन में कमाल कर गए हैं, खासतौर से भाई के साथ के सीन्स, हर्ष का काम बढ़िया हैं, वह अब भी छोटे हैं और छोटेपन की मासूमियत को उन्होंने बखूबी  निभाया है। शांति देवी के रूप में इस बार गीतांजलि कुलकर्णी का  अलग स्वरूप दिखा है, घर के किचन से वह बाहर आई हैं, फुर्तीली के ही बहाने, उनके अंदर का बचपना नजर आया है, जो कहीं उस चायपत्ती के डिब्बे में उन्होंने बंद कर रख दिया था,  जैसे बचत खाते से चेंज बचा कर रखती हैं, वह मन का ढक्कन इस बार खुला है, जमील खान यानी मिश्रा जी काफी इमोशनल हुए हैं और उनके इमोशन से हम कनेक्ट हुए हैं।

बातें जो बेहतर होने की गुंजाइश थी

कहानी में मिडिल क्लास के न्यूआन्सेज  दर्शाने के लिए, कई दृश्यों में चीजें जबरदस्ती ठूसी या थोपी भी नजर आई हैं, संवाद में राइम बनाने के लिए कई जगह बेवजह के तिकड़म किये गए हैं, जो खलते हैं, कुछ दृश्यों में चूक रही है, इस सीरीज से थोड़े और नए किरदारों के जुड़ने की गुंजाईश थी और कई पहलू भी दिखाए जा सकते थे। बहरहाल, इसके बावजूद यह सीरीज परिवार के साथ बैठ कर एन्जॉय की जा सकती है, बेशक।  

कुल मिलाकर, गुल्लक  सीजन 3 मिडिल क्लास के वास्वतिक रूप को दर्शाती एक फोटो फ्रेम के रूप में सामने आती है या सोशल मीडिया के शब्दों में कहें, तो इन पांच एपिसोड में हम रील की तरह सोशल मीडिया का असली चेहरा देख भी लेते  हैं और महसूस भी कर लेते हैं। हमारे पेरेंट्स हमारी जेनरेशन को बताया करते थे न कि हमारे  जेनरेशन ने ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्मों को देखा है, शुक्र है, अगले जेनरेशन को कभी मिडिल क्लास परिवार के गणित को समझाने की बात आई तो हम कह सकेंगे कि हमारे पास भी एक गुल्लक हुआ करता था, जहाँ दौर सेल्फी का नहीं संवेदनाओं  है

वेब सीरीज : गुल्लक  सीजन 3

कलाकार : गीतांजलि कुलकर्णी, जमील खान, वैभव राज गुप्ता, हर्ष मायर और अन्य

निर्देशक : पलास वासवानी

लेखन टीम : दुर्गेश सिंह और विदित त्रिपाठी

चैनल : सोनी लिव

मेरी रेटिंग 5 में से 3 . 5 स्टार