मुझे पता है कि आपमें से कई लोगों ने फीचर फोटो में सिर्फ इस शख्सियत की तस्वीर देख कर, मेरे इस ब्लॉग पर क्लिक कर दिया होगा, क्योंकि इस शख्स ने जिस तरह से आम लोगों से कनेक्ट किया है, एक कलाकार उसी कनेक्ट की तलाश में होता है। मैं यहाँ जरूर बताना चाहूंगी कि आईएस की तैयारी करने वाले छात्र-छात्राएं, जिनके लिए मनोरंजन की दुनिया में झांकना भी कुछ समय के लिए पाप होता है, वे भी इनके काम के मुरीद हैं। दरअसल, वह आम लोगों के बीच से ही निकल कर आये हैं, शायद इसलिए लोगों के दिलों और दिमाग दोनों के ही बीच छाने में उन्हें परेशानी नहीं हुई है। आलम तो अब यह है कि जब वह शाह रुख खान के  साथ भी किसी फ्रेम में होते हैं, तो उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, उनका अपना एक स्टाइल है और जिसमें वह कमाल कर रहे हैं। वेब सीरीज दुनिया के चमकते सितारों की बातचीत में उनका जिक्र न आना मुमकिन ही नहीं है, जी मैं बात कर रही मशहूर अभिनेता और राइटर गोपाल दत्त की, जिन्होंने एक के बाद एक कई किरदार निभाए हैं और लगातार लोकप्रियता ही हासिल कर रहे हैं। हाल ही में उनके किरदार की ‘लंदन फाइल्स’ सीरीज में काफी प्रशंसा हुई। ऐसे में उन्होंने मुझसे अपने अब तक के सफर पर विस्तार से बातचीत की है, मैं उसके कुछ दिलचस्प अंश यहाँ शेयर कर रही हूँ।

शुरुआत का सफर सबके लिए ही कठिन होता है

कम लोगों को ही इस बात की जानकारी होगी कि गोपाल दत्त ने बाकायदा एनएसडी से थियेटर की ट्रेनिंग ली है।

वह अपने शुरुआती दिनों के बारे में विस्तार से बताते हुए कहते हैं

मैं जब मुंबई आया था, तो मुझे पता था कि कठिनाई होगी, लेकिन चूँकि मैं एनएसडी से रहा हूँ, मुझमें कॉन्फिडेंस की कोई कमी नहीं थी और इस वजह से मुझे खास परेशानी नहीं हुई। मुझे पता था, समय लगेगा, लेकिन मैंने लगातार कोशिशें की, हाँ, कभी लौट कर जाने के बारे में नहीं सोचा, क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैं जो कर सकता था, यही कर सकता था। ऐसे में मुझे मेरा पहला प्रोजेक्ट फरीदा मेहता की फिल्म काली सलवार जो कि मंटो की कहानी पर आधारित थी। वहां काम मिला। मुझे उसमें सुरेख सिकरी और इरफ़ान खान एक साथ काम करने का मौका मिला। वह मेरे लिए सीखने का बेस्ट दौर था।


Source : Instagram I @gopaldatt

जरूरी है कि निर्देशक भी एक्सपेरिमेंट करें

गोपाल दत्त का मानना है कि कई निर्देशक आपको एक जैसे रोल्स इसलिए ऑफर करते हैं, क्योंकि उनको भी मेहनत न करनी पड़े

वह बताते हैं

मेरा मानना है कि कई प्रोडयूसर्स और डायरेक्टर्स के दिमाग में यह बातें होती हैं कि इसने जो पिछला किया है, वह हिट हो गया है, तो अब बस उसे ही फिर से करवाओ, क्योंकि वह खुद अधिक मेहनत या एक्सपेरिमेंट नहीं करना चाहते हैं, जबकि कुछ हद तक तो आपको मेहनत करनी ही पड़ती है। लेकिन कुछ निर्देशक ऐसे भी होते हैं, जो पूरी लगन से आप पर ट्रस्ट करते हैं और आपको स्पेस देते हैं, एक कलाकार को भी बस वहीं ढूंढने की जरूरत होती है। जैसे हाल ही में मैंने लंदन फाइल्स की, उसके निर्देशक ने मेरे लिए एक ऐसा किरदार बुना, जैसा मैंने आजतक किया ही नहीं था, तो मुझे भी खुद को उस किरदार में चैलेन्ज करने में मजा आया।

कहानी ही स्टार है

गोपाल का मानना है कि फिर से वह दौर लौट आया है, जब कहानी ही स्टार हो

मुझे लगता है कि फिर से कॉन्टेंट किंग बन गई है। अब चाहे अच्छी कहानी के साथ स्टार हों या न हो, कहानी ही चलेगी। एक जमाना था कि स्टार्स नहीं हैं, तो लोगों को मुश्किल होता था लाना, लेकिन अब आप देखें तो स्कैम, जामतारा जैसी सीरीज को सराहा है।

लोगों ने हमारे शोज को भी देखा है और सराहा है

गोपाल दत्त का मानना है कि यह कहना गलत होगा कि हमारे शोज को लोकप्रियता नहीं मिलती है।

वह कहते हैं

हमेशा यह बात होती है कि बाहर का काम बेस्ट होता है, लेकिन ऐसा नहीं है, हमारे भारत में बनी सीरीज भी बाहर देखी गई है और सराही गई है। सबसे अच्छा उदाहरण तो दिल्ली क्राइम है। इस सीरीज को इंटरनेशनल अक्लेम्ड है, इस सीरीज में काफी ईमानदारी से दिखाया गया है। लेकिन हाँ, मैं यह जरूर कहूंगा कि अब एक्सपोजर बढ़ चुका है, तो कॉम्पटीशन अब इंटरनेशनल हो चुका है।
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टीवीएफ ने एक अच्छा ब्रिज दिया है

गोपाल मानते हैं कि टीवीएफ की दुनिया ने युवाओं को दोबारा मनोरंजन की दुनिया से जोड़ा।

वह कहते हैं

जब ओटीटी आये, तो उन्होंने उसी लोग को टारगेट किया था, जो यंग लोग हैं, जो टीवी से दूर हुए थे, अब जब वे लोग ओटीटी पर आ गए हैं, तो यह एक अच्छा ब्रिज है, ओटीटी और टीवी ऑडियंस के बीच में, गुल्लक और पंचायत जैसे शोज, जो अब परिवारों को भी साथ ला रहा है।


शाह रुख खुशियां लाते हैं आस-पास

गोपाल कहते हैं की शाह रुख के साथ काम करना उनके लिए बेस्ट अनुभव है

वह कहते हैं

शाह रुख खान में जो वार्मथ है, वह जहाँ भी होते हैं, वहां ख़ुशी फ़ैल जाती है, वह एक सुपरस्टार हैं, लेकिन काम करते हुए ऐसा लगता है कि जैसे वह हम सबके बीच के हैं, वह अपने को-स्टार को अपने बराबर समझते हैं, जो आपको उनके साथ काम करते हुए कम्फर्टेबल करता है।

जिस ऑफिस में घुसने नहीं देते थे, वहां इज्जत से बुलाते हैं

गोपाल अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि मुंबई शहर सबकुछ देती है।

वह कहते हैं

अब बहुत कुछ बदला है, जिस ऑफिस में पहले घुसने नहीं देते थे, वहां अब चाय-कॉफी के साथ एक अलग ही इज्जत मिलती है, लेकिन मैं मानता हूँ कि शुरू में ही फेम नहीं मिला, तो अच्छी बात है, वरना आप कभी चीजों की अहमियत नहीं समझ पाते हैं और खुद को विनम्र बना कर रखना आपके लिए कठिन हो जाता है।
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कॉमेडी को तवज्जो मिलना बेहद जरूरी

गोपाल कॉमेडी को सबसे टफ जॉनर मानते हैं

वह कहते हैं

कॉमेडी करना सबसे कठिन होता है, क्योंकि इसे लिखते हुए और प्ले करते हुए, आपको सबसे अधिक इंटेलिजेंट प्रोस्पेक्टिव दिखाना होता है और हर बार कुछ नया करना होता है, लेकिन जब भी अवार्ड्स की बात आती है, बेस्ट एक्टर अवार्ड्स इंटेस को देते हैं, कॉमेडी को नहीं, तो वह एक परेशानी तो होती ही है।

वाकई, गोपाल दत्त की इन बातों से तो मैं भी सहमत हूँ कि कॉमेडी लिखने के लिए आपको काफी चीजों का ज्ञान रखना जरूरी है और इसमें हर बार कुछ नए एक्सपेरिमेंट करने ही पड़ते हैं, ऐसे में गोपाल दत्त जैसी बातें करते हैं, वह भी इस बात का साक्षी है कि वह खुद कितने इंटेंस हैं और उन पर नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा का कितना इन्फ़्लुएंस हैं, उनके काम के तो हम सब मुरीद हैं ही और आगे भी रहेंगे, इस बात पर मुझे तो यकीन है।