सोशल मीडिया पर इन दिनों नेटफ्लिक्स के शो माई का एक दृश्य पूरी तरह से वायरल हो रहा है, इस वीडियो क्लिप में साक्षी तंवर, जो कि सीरीज में एक माँ के किरदार में हैं, वह अपनी बेटी के शोक के दौरान, घर आये मेहमानों के लिए चाय बनाती है, इस पर सोशल मीडिया में एक बहस शुरू हुई है कि एक औरत को इस माहौल में भी यह सब करना पड़ता है। दरअसल, मेरा मानना है कि इस शो में साक्षी तंवर ने जो अभिनय किया है, वह सिर्फ एक माँ की भूमिका में नहीं, बल्कि एक महिला की जिंदगी के महत्वपूर्ण लेयर्स को दर्शाती हैं। और मेरी समझ से साक्षी ने इसे जिस कन्विक्शन से निभाया है कि यह सीरीज, हाल के दौर में बनी ऐसी सीरीज होगी, जो लम्बे समय तक याद की जाएगी। मैं इसे सिर्फ एक रिवेंज ड्रामा के रूप में देखती ही नहीं हूँ। इस कहानी में एक महिला के कई लेयर्स, अस्तित्व की कहानी है। 20 सालों से इंडस्ट्री में धाकड़ अभिनय करने वाली साक्षी के लिए भी दरअसल यह शो करना आसान नहीं रहा, उन्होंने शो की कामयाबी को लेकर और अपने अब तक के सफर पर मुझसे दिलचस्प बातचीत की है, मैं उसके अंश यहाँ पेश कर रही हूँ।  

Source : Instagram I @netflix_in

माई में शील के किरदार को लेकर श्योर नहीं थी कि कर पाऊंगी या नहीं

साक्षी ने अब तक अपने अभिनय करियर में बेहद चुनिंदा किरदार निभाए हैं, लेकिन जो भी निभाए हैं, सबमें उनकी शिद्दत नजर आती है। ऐसे में उन्हें माई के किरदार शील को समझने में क्या-क्या चुनौतियाँ फेस करनी पड़ीं, उसके बारे में साक्षी तंवर ने विस्तार से बताया।

वह कहती हैं

सच कहूं तो मैं थोड़ी हैरान थी, जब यह रोल मुझे ऑफर हुआ था। मैं बिल्कुल खुद को कन्विंस नहीं कर पा रही थी कि मैं ऐसा कुछ कर पाऊंगी क्या, साथ ही मेकर्स ने मुझे कैसे जेहन में रखा, क्योंकि ऐसा किरदार पहले किया ही नहीं था। लेकिन जब मैंने हाँ कह दिया। तब ही कहूं, तो यह मेरे लिए जटिल किरदार रहा। मुझे भी इस किरदार के लेयर्स को समझने में वक़्त लगा। जब मैंने शूट भी शुरू किया, तो मैं अटक-अटक जा रही थी, एक सीन में जहाँ मैं यश को खिचड़ी दे रही हूँ, उसमें मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि शील ऐसा क्यों कर रही है। मैंने फिर एक दिन का ब्रेक लिया शूट से। फिर दूसरे दिन शूट शुरू किया, क्योंकि शुरू में सुर नहीं मिल रहा था। धीरे-धीरे मैं इस कहानी के रिद्धम को समझ पायी।
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साक्षी आगे बताती हैं

अमूमन, मुझे अपने काम के लिए बहुत अधिक प्रेप करना पसंद नहीं था। मुझे रॉ करना अच्छा लगता है, जैसे जब आप सेट पर जाएँ, तो वहां के माहौल के हिसाब से एक्ट करें, तो मुझे अच्छा लगता है, क्योंकि मुझे ऐसा लगता है कि अधिक प्रेप करने से, सेट पर जाकर आप मेकेनिकल हो जाते हैं। लेकिन इस सीरीज में बिना वर्कशॉप किये काम नहीं बनता और थैंक गॉड कि मैंने काफी रिहर्सल किया, क्योंकि उसके बगैर मैं शायद शील और उसकी बेटी के रिश्ते की गहराई नहीं समझ पाती।

माँ के किरदार ही करती आई हूँ, बस कोशिश रही कि टाइपकास्ट न हो जाऊं

साक्षी कहती हैं कि ऐसा उनके लिए पहली बार नहीं हुआ है कि उन्होंने माँ का किरदार निभाया है, बल्कि इससे पहले भी उन्होंने माँ का किरदार निभाया है।

वह कहती हैं

मैंने पहले भी ऐसे किरदार कर चुकी हूँ, मैंने दरअसल, हमेशा यही माँ के किरदार ही  निभाए हैं और ऐसा भी नहीं है कि मैं उन इमोशन को तब फील नहीं करती थी, अब चूँकि एक माँ बन चुकी हूँ, तो बेहतर फील कर पा रही हूँ । एक एक्टर के रूप में मेरा काम ही यही है कि मैं इमेजिन करके उस दुनिया को जिऊँ।  माई के टाइम पर ये चेंज हुआ है कि मैं अब माँ बन गई हूँ, तो हाँ, कभी-कभी एक बेटी की माँ होने का ख्याल दिमाग में आ जा रहा था, यह किरदार करते हुए, जो आपको अचानक से परेशान कर देता है, लेकिन फिर आपको उससे खुद को डिटैच करना पड़ता है।  कांसस डिसीजन लेना होता है, अपने किरदार में रहने के लिए। वहीं एक एक्टर की चुनौती होती है।
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फीमेल के लिए ही, पुरुष एक्टर्स के लिए भी बेस्ट समय है

साक्षी का मानना है कि ओटीटी की दुनिया ने सिर्फ फीमेल्स कैरेक्टर्स को ही नहीं, बल्कि अच्छे एक्टर्स के लिए दरवाजे खोले हैं।

वह कहती हैं

मैं इसे बेहद अच्छी वेलकमिंग चेंज की तरह देखती हूँ, अब तो काफी अचे और इंटरेस्टिंग कैरेक्टर लिखे जा रहे हैं, सच कहूं, तो मुझे लगता है कि जेंडर को हटा दिया जाए, तो पुरुष कैरेक्टर्स के लिए यह बेस्ट टाइम है।  वे सारे एक्टर्स जो, टिपिकल सिनेरियो में कहीं खो जाते हैं, लेकिन अब उनकी स्टोरीज दिख रही है, अच्छे स्टोरी टेलर्स आ रहे हैं और लगातार एक्सपेरिमेंट्स हो रहे हैं ।
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टाइपकास्ट की मार झेली है मैंने भी

साक्षी कहती हैं कि अब इस पोजीशन पर आने के बाद, लोगों को ऐसा लगता है कि उनके लिए चीजें आसान थी, तो ऐसा नहीं, उन्होंने भी टाइपकास्ट को झेला है।

वह कहती हैं

आज आप यह बात कह सकती हैं कि मैं टाइपकास्ट नहीं हुई, लेकिन मैंने भी इसकी मार को झेला है, लेकिन हाँ, मेरा एक अलग तरह का स्ट्रगल रहा। मैं शुरू से ही बहुत कॉम्पटीशन में नहीं रही। मुझे भी शुरू में एक ही तरह के रोल आते थे और मुझे भी टाइपकास्ट किया गया, मुझे जिस तरह के काम मिलते थे, वह मेरे टैलेंट से कहीं पीछे होते थे, लेकिन फिर भी मैं निराश कभी नहीं हुई, क्योंकि शुरू से मैं संतुष्ट रहने में ही यकीन करती हूँ, मुझे तो एक के बाद भी रोल नहीं मिलता, तो फर्क नहीं पड़ता, पहला काम मिल गया था, वही बहुत था। लेकिन मैंने हमेशा ही छोटे-छोटे गैप्स लिए, एक रोल करके मैं गायब हो जाती थी, फिर वापस आती थी, क्योंकि मैंने अपने लिए यह तय रखा हमेशा कि मैं एक रोल को रिपीट नहीं करूंगी, फिर चाहे मैं आगे काम कर पाऊं या नहीं। मैंने रोल्स पाने के लिए, हमेशा जीरो कोशिश की। लेकिन शायद इस वजह से भी मुझे अच्छे काम मिले।
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दोस्त ने कहा जो वर्क करता है, करती जाओ

साक्षी कहती हैं कि उन्हें ज्यादातर माँ के किरदार ही ऑफर हुए हैं। ऐसे में उनकी दोस्त ने उन्हें एक सलाह दी थी।

वह बताती हैं

मुझे शुरू में थोड़ी खीझ होती थी कि सिर्फ माँ के रोल्स आ रहे हैं, लेकिन मेरी एक दोस्त ने समझाया, जो तुम्हारे लिए वर्क कर रहा है, उसको मत छोड़ो, फिर मैंने तय किया कि माँ के कास्ट में ही मैं एक्सपेरिमेंट्स करती रहूंगी और उन्हें ही नए ढंग से करती रहूंगी और फिर यह मेरे लिए काम कर गया। अब पीछे मुड़ कर देखती हूँ, तो लगता है कि मैंने किरदारों को नहीं, किरदारों ने मुझे चुना।

वाकई में, साक्षी की यही यूनिकनेस उनके किरदार में दिखती हैं और वह अपने बेस्ट देती हैं। मुझे तो साक्षी जब भी ऑन स्क्रीन रोती हैं, उनका अभिनय देख कर मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इसलिए मैं हमेशा ही उनके काम को पसंद करती हूँ, एक नेचुअल एक्टर की परिभाषा का उदाहरण मेरे लिए साक्षी से बेहतर कोई नहीं, आने वाले समय में उनसे मुझे ऐसे ही और बेस्ट किरदारों की उम्मीद है।